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गद्यकाव्य
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समय पूर्व ही प्राप्त हुए दण्डी के ग्रन्थ अवन्तिसुन्दरीकथा में वर्णित आत्मकथा से ज्ञात होता है .क वह किरातार्जनीय काव्य के लेखक भारवि का प्रपौत्र था । भारवि का वास्तविक नाम दामोदर था। वह पुलकेशी द्वितीय के छोटे भाई विष्णुवर्धन का मित्र था । एक बार वह राजकुमार के साथ मृगया-यात्रा में गया । वहाँ क्षुधा से अत्यन्त पीड़ित होकर उसने जीवन-रक्षार्थ मांस खा लिया। वह इस पाप के कारण अतिलज्जित होकर घर नहीं लौटा और जंगल में ही घूमता रहा । वहाँ पर वह गंगा-वंश के निर्वासित राजकुमार दुविनीत का मित्र हो गया । इस राजकुमार के वंश का कांची के पल्लव राजाओं के साथ वैवाहिक सम्बन्ध था। इस राजकुमार के प्रयत्न से भारवि कांची के राजा सिंहविष्ण का आश्रित कवि हो गया । भारवि की आयु उस समय लगभग २० वर्ष थी। उसने कांची में ही अपना निवास-स्थान बना लियः । उसका एक पुत्र मनोरथ नाम का हुआ । मनोरथ का चतुर्थ पुत्र वीरदत्त था। दंडी वीरदत्त का पुत्र था । बाल्यकाल में ही उसके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया । एक चालुक्य राजा ने कांची नगर पर आक्रमण किया और नगर को लूट लिया। अपनी रक्षा के लिए दंडी को नगर छोड़कर बाहर जाना पड़ा । वह बहुत समय तक इधर-उधर घूमा और उच्च शिक्षा प्राप्त की। जब राजा नरसिंहवर्मा प्रथम ने कांची को पुनः जीत लिया, तब दंडी पुनः लौट आया और कांची में स्थिर रूप से रहने लगा। वहीं पर उसने गद्य में अवन्तिसुन्द कथा नामक प्रेमकथा लिखी।
इस ग्रन्थ में लिखी हुई घटनाएँ कहाँ तक सत्य हैं, यह कहना असंभव है । इसमें जो कुछ उल्लेख किया गया है, उससे ज्ञात होता है कि भारवि ५८० ई० के लगभग कांची गया होगा। दुविनीत निर्वासित जीवन व्यतीत करने के बाद ५८० ई० के लगभग अपनी भूमि का राजा हो गया । सिंहविष्ण ने ५७५ से ६०० ई० के बीच में कांची पर राज्य किया है । ऐसा ज्ञात हुआ है कि नरसिंहवर्मा प्रथम ने ६५५ ई. के लगभग कांची को पुनः जीता था । यह असंभव नहीं है कि इस समय तक भारवि का प्रपौत्र उत्पन्न