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संस्कृत साहित्य का इतिहास
गन्थों से सूक्तियाँ एकत्र की हैं। उसने अपनी भी सूक्तियाँ इसमें दी हैं । इसे उसने १६३ अनुभागों में क्रमबद्ध किया है। सकलकीर्ति की लिखी हुई सुभाषितावलि की एक हस्तलिखित प्रति प्राप्त होती है। यह ज्ञात नहीं है कि यह सकलकीति जैन विद्वान सकलकीर्ति ही है, जो १४५० ई० के लगभग जीवित था।
पोतयार्य ने १४६६ ई० में प्रसंगरत्नावलि लिखी है। यह विभिन्न विषयों पर श्लोकों का संग्रह है । जोनराज के शिष्य श्रीवर ने १४८० ई० के लगभग सुभाषितावलि लिखी है। उसने उसमें ३८० से अधिक कवियों के श्लोक उद्धृत किए हैं । इसी समय के लगभग वल्लभदेव ने सुभाषितावलि लिखी है । यह १०१ भागों में विभक्त है । इसमें ३५२७ श्लोक हैं । ये ३५० से अधिक कवियों की रचनाओं से लिए गए हैं। इनमें से अधिकांश उत्तरी भारत के हैं । कृष्णचैतन्य के शिष्य रूपगोस्वामी (१५०० ई०) ने पद्यावली ग्रन्थ लिखा है । इसमें १२५ कवियों के ३८६ श्लोक उद्धृत हैं। इसमें उसने वे श्लोक रखे हैं, जो श्रीकृष्ण की पूजा का महत्त्व बताते हैं पेड्डभट्ट ने १५०० ई० के लगभग सूक्तिवारिधि लिखा है । हरिकवि ने सुभाषितहारावलि लिखी है । इसमें उसने पूर्ववर्ती और समकालीन कवियों के श्लोक उद्धृत किए हैं । उसने जगन्नाथ पण्डित के भी श्लोक उद्धृत किए हैं, अत: उसका समय १७०० ई० के लगभग मानना चाहिए। - शिवाजी के पुत्र शम्भु ने १६६० ई० के लगभग बुधभूषण ग्रन्थ लिखा है । इसमें तीन भागों में ८८३ श्लोक हैं । डा० बालिक ने १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य के छटे हुए लगभग ८००० श्लोक एकत्र किए और उनको आलोचनात्मक पद्धति से संकलन करके उनका जर्मन भाषा में गद्य में अनुवाद किया । इस ग्रन्थ का नाम है--इण्डिशे स्खे (भारतीय सूक्तियाँ)। हरिभास्कर का संगृहीत सुभाषित-ग्रन्थ पद्यामृततरंगिणी है । इसका समय अज्ञात है । शिवदत्त के किए हुए सुभाषितसंग्रह का नाम सुभाषितरत्नभाण्डागार है।