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संस्कृत साहित्य का इतिहास
सातवाहन वंशी एक हाल नामक राजा ने ७८ ई० पू० के लगभग राज्य किया है । उसने प्राकृत में गीतरूप में कुछ श्लोक बनाए होंगे और कुछ ऐसे श्लोकों का संग्रह किया होगा अथवा अपने आश्रित किसी कवि के द्वारा अपने से पूर्व के प्राप्त श्लोकों को क्रमबद्ध कराया होगा और उसको अपने पारिवारिक नाम सातवाहन के नाम से प्रसिद्ध किया होगा । ग्रन्ध्रभृत्य राजा विद्वानों के आश्रयदाता थे और उन्होंने प्राकृत साहित्य को भी आश्रय दिया था । अतः गाथासप्तशती का समय प्रथम शताब्दी ई० में समझना चाहिए । इस सप्तशती में श्रृङ्गार के विभिन्न अंगों का विस्तृत और वास्तविक रूप प्रस्तुत किया गया है । इन श्लोकों में कोमलता और भाव-सौन्दर्य विद्यमान है । पाश्चात्य विद्वानों का मत है कि इस सप्तशती के निर्माण के बाद बहुत से परिवर्तन हुए हैं ।
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संस्कृत श्लोकों का सर्वप्रथम सुभाषित-संग्रह 'कवीन्द्रवचनसमुच्चय' है । इस ग्रन्थ की नेपाली भाषा में प्राप्त हस्तलिपि १२वीं शताब्दी ई० की है । इसमें सबसे बाद का कवि राजशेखर (६०० ई०) है, जिसका उद्धरण दिया गया है । अतः इस ग्रन्थ का समय १००० ई० के लगभग मानना चाहिए । इसमें प्राचीन लेखकों के ५२५ श्लोकों का संग्रह है । इसके लेखक का नाम प्राप्त नहीं होता है ।
चालुक्य सम्राट् विक्रमादित्य द्वितीय के पुत्र सोमेश्वर ने ११३१ ई० में अभिलषितार्थ चिन्तामणि लिखा है । इसका दूसरा नाम मानसोल्लास भी है । इसमें विभिन्न विषयों पर बहुत सामग्री प्राप्त होती है । इसमें पाँच भाग हैं । इसमें राजाओं के रहने की विधि, उनके मनोरंजन की वस्तुओं आदि का वर्णन है । इसमें मनोरंजन की सभी चीजों का वर्णन है । "इन विपयों के साथ ही संस्कृत में प्राप्त ज्ञान और कला कां ऐसा कोई भी विभाग शेष नहीं रह गया है, जिसके प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन इसमें उपलब्ध न होता हो। इसमें राज्य व्यवस्था, गणित और फलित ज्योतिष, तर्कशास्त्र,