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गीति-काव्य
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टीका की आवश्यकता नहीं समझी । साहित्यशास्त्रियों ने इससे उद्धरण इसलिए नहीं दिया है, क्योंकि वे सरल ग्रन्थों से उद्धरण नहीं देते हैं । उनका कथन यह भी है कि यदि इसको कालिदास की रचना नहीं मानेंगे तो उसकी कीति को बहुत क्षति पहँचेगी। यह सत्य है कि इसमें कुछ ऐसे चिह्न हैं, जिनके आधार पर यह कालिदास की कृति मानी जा सकती है । ऐसे कई ग्रन्थ हैं, जिनमें इस प्रकार के चिह्न प्राप्त होते हैं, परन्तु उनके लेखक निश्चितरूप से अन्य कवि ज्ञात हैं । इसमें उसने एक अप्रचलित रूप का प्रयोग किया है । कालिदास के अन्य काव्यों में इस प्रकार के रूपों का सर्वथा अप्रयोग है, अतः इनका रचयिता कालिदास को मानना उचित नहीं है ।
शृङ्गारतिलक ३१ श्लोकों का गीतिकाव्य है। इसमें शृङ्गार के विभिन्न रूषो का वर्णन है। इसी विषय पर २६ उत्तम श्लोकों का पुष्पबाणविलास नामक गीतिकाव्य है । राक्षस काव्य २० श्लोकों में एक गीतिकाव्य है । इसमें वत के दृश्य का वर्णन है, जहाँ पर प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ भ्रमण कर नहा है । यह अनुप्रास से पूर्ण है । ये तीनों गीतिकाव्य कालिदास की कृति कंटे जाते हैं।
अमरु या अमरुक ने १०० सुन्दर इलोकों का अमरुकशतक नामक गीतिकाय बनाया है। इसमें शृङ्गार के विभिन्न रूपों का वर्णन है । इसके शृङ्गार के विभिन्न रूपों के चित्रण बहुत यथार्थ तथा अत्यधिक कल्पनात्मक हैं । इसवे चार संस्करण उपलब्ध होते हैं, इनमें केवल ५१ श्लोक समान मिलते है । वामन (८०० ई०) और आनन्दवर्धन ( ८५० ई० ) ने इसके उदाहरण दिए हैं । अत: यह ८०० ई० से पूर्व का लिखा हुअा होना चाहिए । इसका लेखक अद्वैत-बेदान्त के प्रचारक शंकर को मानना भ्रम है । भर्तहरि ने शृङ्गारशतक बनाया है। इसमें शृङ्गार सम्बन्धी १०० श्लोक गीतिकाव्य के रूप में हैं । अन्य कई लेखकों के तुल्य उसने शृङ्गार को मनुष्य-जीवन का अन्तिम लक्ष्य नहीं माना है । वैयाकरण भर्तृहरि और विक्रमादित्य के सौतेले
१. सोऽयं वो विपरीतरीतु वितनुर्भद्रं वसन्तान्वितः । ऋतुसंहार ६-२८ सं० सा० इ०-१०