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गीति-काव्य
प्रावृट् प्रवासव्यसने मन्दाक्रान्ता विराजते ।
उन्होंने इस छन्द को असामान्य सौन्दर्य के साथ अपनाया है । सुवा कालिदासस्य मन्दाक्रान्ता प्रवल्गति ।।
- सुवृत्ततिलक ३।३३
इस काव्य में ११५ श्लोक हैं । इस श्लोक - संख्या के सम्बन्ध में मतैक्य नहीं है ।' कालिदास ने जो भाव प्रकट किए हैं, उससे उसके मूल स्रोत का ज्ञान होता है । रामायण में सुग्रीव का वानरों को लंका का मार्ग बताना, लंका का वर्णन, सायंकाल के समय हनुमान का लंका में प्रवेश, अशोकवन में सीता का वर्णन और अगले दिन प्रातःकाल हनुमान का सीता से मिलना आदि वर्णनों का प्रभाव कालिदास के इस काव्य पर पड़ा है ।
१. मल्लिनाथ १२१ पूरणसरस्वती ११० दक्षिणावर्तनाथ ११० भरतसेन
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२. तुलना करो - मेघदूत उत्तरमेघ
श्लोक ३७
कालिदास ने अपने इस काव्य को हार्दिक भावों से पूर्ण किया है । यक्ष की पत्नी का वर्णन तथा उसकी वियोगावस्था के वर्णन से स्पष्ट ज्ञात होता है कि किस प्रकार कालिदास ने मानव हृदय के भावों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया है, विशेषरूप से विपत्ति के काल में । उसने मनुष्यों के तथा प्रकृति के सुकुमार एवं सुन्दर स्वरूप और भावों का गम्भीरता से निरीक्षण किया है । जिस प्रकार मनुष्य अपने भावों को प्रकट कर सकता है, उसी प्रकार : अन्य जीव और वनस्पति भी अपने हार्दिक भावों को प्रकट कर सकते हैं । अतएव कालिदास ने मानव जगत् को प्राकृतिक जगत् से सम्बद्ध किया है । यह कालिदास के मेघ के वर्णन और उसकी यात्रा के वर्णन से स्पष्ट ज्ञात होता है । उसकी शैली परिष्कृत, उत्कृष्ट और सुन्दर है । उसने स्पष्टरूप से प्रति
तथा वल्लभदेव १११
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३६ और ३८
४८
१४१
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रामायण सुन्दरकाण्ड
सर्ग २२ के श्लोक १७ और १८:
५३ का श्लोक २
३८ काकासुर वृत्तान्त
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