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अध्याय १४
गीति-काव्य गीति-काव्य काव्य का वह रूप है, जो वाद्यों के साथ संगीतात्मक रूप में गाया जा सकता है । गीति-काव्य प्रेम, शोक या भक्ति के भावों, विचारों या अनुभवों का प्रकाशन है। यह मानव-हृदय का स्वाभाविक प्रवाह है। यह हृद्गत भावों का स्वतःसिद्ध प्रकाशन है। यह सामान्य कविता की अपेक्षा भावनाओं को अधिक प्रभावित करता है । संस्कृत साहित्य में गीति-काव्य अधिक लम्बे नहीं हैं। परिमाण में यह एक श्लोक से लेकर कई श्लोकों तक का होता है । गीति-काव्य में जो कुछ कहा जाता है, वह स्वतः पूर्ण होता है । भारतीय गीति-काव्य में जीवों और वृक्षों का प्रमुख स्थान रहा है । गीति-काव्य के लेखकों ने तुलना के लिए चकोर, चक्रवाक, चातक, कमल, लता तथा अन्य वृक्षों को लिया है । गीति-काव्य को खण्ड-काव्य कहा जाता है, क्योंकि यह पद्यरूप में होता है; परन्तु काव्य के पूरे लक्षण इसमें नहीं होते हैं ।। संस्कृत के गीति-काव्यों ने १९वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के जर्मन कवि हीनरिच हीन को प्रभावित किया । फलतः उसने 'अाफ़ फ्लूगेल्न डेस जेसेन्जेस' नामक गीति-काव्य की रचना की। __गीतिकाव्यों का उद्गम वैदिक-काल से ही हुआ है । शोक के प्रवाह में वाल्मीकि के श्लोकात्मक उद्गार को गीतिकाव्य कह सकते हैं । गीतिकाव्य को दो भागों में बाँटा गया है--(१) शृंगारिक (२) धार्मिक ।
शृंगारिक गीतिकाव्य शृंगारिक गीतिकाव्य विभिन्न रूपों में प्राप्त होते हैं । इनमें से दूत पद्धति के गीतिकाव्य विशेष प्रचलित हैं। ऐसे गीतिकाव्यों में वियोगी प्रेमी अपनी
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