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कालिदास के बाद के कवि
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१५४० ई० के लगभग २० सर्गों में अच्युतरायाभ्युदय नामक काव्य लिखा है | इसमें उसने विजयनगर के कृष्णदेवराय के भाई राजा अच्युतराय (१५३०१५४२ ई०) के पराक्रम का वर्णन किया है ।
लक्ष्मण भट्ट के पुत्र रामचन्द्र ने १५४२ ई० में द्विसन्धान पद्धति पर रसिकरंजन नामक काव्य लिखा है । एक ओर से पढ़ने पर यह शृंगारिक अर्थ देता है और दूसरी ओर से पढ़ने पर वैराग्य - सम्बन्धी अर्थं देता है ।
मालाबार के निवासी उत्प्रेक्षावल्लभ ने ३६ पद्धति ( अध्याय ) में एक पूर्ण भिक्षाटनकाव्य नामक काव्य लिखा है । इसमें वर्णन किया है कि किस प्रकार शिव एक भिक्षुक के रूप में एक दानी चोल राजा के दान की परीक्षा के लिए उसके पास जाते हैं । लेखक का नाम ग्रंथ में नहीं दिया हुआ है । इसके काव्य में शिवभक्तदास शब्द आता है । इसके आधार पर कुछ व्यक्ति इसका यही नाम मानते हैं, किन्तु यह केवल कल्पना ही है । ऐसा ज्ञात होता है कि उसकी उत्तम उत्प्रेक्षाओं की प्रशंसा में उसे उत्प्रेक्षावल्लभ उपाधि दी गई थी । इस ग्रन्थ का समय अज्ञात है । आलोचक इसका समय १६वीं शताब्दी के लगभग मानते हैं ।
रुद्रकवि ने २० सर्गों में राष्ट्रौढवंशमहाकाव्य नामक काव्य लिखा है | इसमें उसने मयूरगिरि के प्रथम राजा राष्ट्रौढ से लेकर नारायणशाह तक के परिवार का वर्णन किया है । यह नारायणशाह का आश्रित कवि था । इसने यह काव्य १५९६ ई० में लिखा है ।
चिदम्बर ने १६०० ई० के लगभग त्रिसन्धान पद्धति पर राघवपाण्डवयादवीय नामक काव्य लिखा है । इसके प्रत्येक श्लोक के तीन अर्थ हैं । इसने एक साथ उन्हीं श्लोकों में राम, पांडवों और कृष्ण का जीवन-चरित वर्णन किया है ।
यज्ञनारायण तन्जोर के नायक राजा अच्युत ( १५७७-१६१४ ई० ) और उसके उत्तराधिकारी रघुनाथ के प्रधान मन्त्री गोविन्द दीक्षित का पुत्र था । यज्ञनारायण रघुनाथ का आश्रित कवि था । उसका समय १६०० ई०