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संस्कृत साहित्य का इतिहास
युद्ध का वर्णन है । साथ ही यह ग्रन्थ व्याकरण के नियमों का उदाहरण रूप में स्पष्टीकरण भी करता है । व्याकरण के एक ग्रन्थ काशिकावृत्ति ( ६०० ई० के लगभग) में भीम का उद्धरण भी दिया गया है । अतः इसका समय ५०० ई० के लगभग मानना चाहिए । भट्टि का रावणबध और हालायुध का विरहस्य वर्णन की दृष्टि से इसके समान है ।
कुमारदास ने जानकीहरण काव्य लिखा है । इसमें रामायण की कथा का वर्णन है । यह लेखक लंका का राजा कुमारदास है । इसका समय ५१७ से ५२६ ई० है । यह ग्रन्थ मूलरूप में नष्ट हो गया है। इसका अक्षरशः अनुवाद लंका की भाषा में प्राप्य है । इसमें २५ सर्ग बताए जाते हैं । इसके प्रारम्भिक १४ सर्ग तथा १५वें का कुछ अंश संस्कृत में उपलब्ध हुआ है । इसके मूलग्रन्थ के परिमाण के विषय में मतभेद है । इस महाकाव्य को एक हस्तलिखित प्रति २० सर्गों की है ।' यह प्रति पूर्ण है और जो मुद्रित प्रति उपलब्ध होती है, उससे ठीक मिलती है। कुछ स्थलों पर पाठभेद अवश्य है । इस हस्तलिखित प्रतिज्ञात होता है कि इसके लेखक कुमारदास ने अपने दो ममेरे चाचाओं की सहायता से यह ग्रन्थ तैयार किया था । इसके १७वें सर्ग में यमक अलंकार बहुत अधिकता के साथ प्राप्त होता है । लेखक ने १८वें सर्ग में शब्दालंकारों के प्रयोग में अपनी चतुरता दिखाई है । इसके २० वें सर्ग में राम का पुष्पक विमान द्वारा प्रयोध्या लौटने का वर्णन है । इसका लेखक कौन-सा कुमारदास है, यह निश्चयपूर्वक कहना कठिन है । यदि इसका लेखक लंका का राजा कुमारदास ही है तो इस ग्रन्थ का रचनाकाल ५२० ई० के लगभग मानना चाहिए | कुमारदास कालिदास का विशेष प्रशंसक ज्ञात होता है । इसने कालिदास का बहुत सफलता के साथ अनुकरण किया है । अतएव साहित्यशास्त्री राजशेखर ( ६०० ई० ) ने इसकी प्रशंसा में निम्नलिखित श्लोक कहा है-
१. मद्रास गवर्नमेंट लाइब्रेरी । हस्तलिखित प्रति नं० २६३५ ।