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कालिदास के बाद के कवि
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लिखा हुआ है। इसके प्रारम्भ में ८ श्लोक हैं । उसके बाद लम्बा गद्य-भाग है और अन्त में एक श्लोक है। इसमें श्लेष और रूपक अलंकार का बहुत प्रयोग हुआ है। दूसरे का लेखक चन्द्रगुप्त द्वितीय का मन्त्री वीरसेन है । यह चन्द्रगुप्त की प्रशंसा में लिखा गया है । इसमें चन्द्रगुप्त और वीरसेन दोनों ही विद्वान् बताए गए हैं ।
इनके अतिरिक्त इस काल में बहत से शिलालेख लिखे गए हैं। इनमें से कुछ प्राकृत में हैं और शेष संस्कृत में हैं । इनसे सिद्ध होता है कि इस काल में साहित्यिक रचनाएँ बन्द नहीं हुई थीं। इनसे यह भी सिद्ध होता है कि संस्कृत साहित्यिक भाषा के रूप में प्रचलित थी। बाद के संस्कृत साहित्य में जो शब्दालंकार और अर्थालंकार प्राप्त होते हैं, वे इन शिलालेखों में प्रचुर मात्रा में प्राप्त होते हैं। इससे सिद्ध होता है कि इस काल में साहित्यिक कार्य चल रहा था। इस समय सुयोग्य कवि हुए होंगे, परन्तु उनकी रचनाएँ नष्ट हो गई हैं, ऐसा ज्ञात होता है । यह भी संभव है कि इस समय बार-बार राजनीतिक आक्रमण के कारण कषियों के आश्रयदाता राजारों के लिए यह संभव नहीं रहा होगा कि वे कवियों को आश्रय दें। राजाओं के संरक्षण के अभाव में योग्य कवि उत्तम ग्रन्थों की रचना नहीं कर सके होंगे । जब तक भारत का नवीन राजनीतिक इतिहास नहीं लिखा जाता, तब तक इस समय की वास्तविक स्थिति के विषय से कुछ भी निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है ।
वात्स्यायन का कामसूत्र इसी समय में लिखा गया है। यह ग्रन्थ शिष्ट जन-समुदाय का चित्रण करता हैं । इसमें निर्देश दिए गए हैं कि मनुष्य को किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए, किस प्रकार समय-यापन करना चाहिए और वह किस प्रकार अच्छे व्यक्तियों की संगति प्राप्त करे । मनुष्य किस प्रकार का
१. वैदर्भी और गौड़ी दो मुख्य रीतियाँ हैं । इसके लिए देखें इसी पुस्तक का अध्याय २५ ।
सं० सा० इ०-८