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अध्याय १३ काव्य-साहित्य, कालिदास के बाद के कवि कालिदास के बाद के लेखकों में, जिसके विषय में निश्चित सूचना प्राप्त होती है, अश्वघोष है । यह दो महाकाव्यों का रचयिता है-सौन्दरनन्द और बुद्धचरित । सौन्दरनन्द के अन्तिम श्लोक से ज्ञात होता है कि वह सुवर्णाक्षी का पुत्र और साकेत-निवासी था। उसकी उपाधियाँ थीं--भिक्षु, आचार्य भदन्त, महाकवि और महावादी । उसके उपदेश को सुनने के लिए घोड़े भी अपना आहार छोड़ देते थे । ऐसी उसकी वाशक्ति थी। अतएव उसका नाम अश्वघोष पड़ा । वह जन्म से ब्राह्मण था। बाद में उसने बौद्धधर्म स्वीकार किया था। चीनी परम्परा के अनुसार वह प्रथम शताब्दी के राजा कनिष्क का समकालीन या गुरु था। अश्वघोष बौद्धधर्म की महायान शाखा के संस्थापकों में से एक था। उसका समय प्रथम शताब्दी ई० है।
सौन्दरनन्द महाकाव्य १८ सर्गों में है । इसमें वर्णन है कि किस प्रकार गौतमबुद्ध ने अपने सौतेले भाई नन्द को बौद्ध भिक्षुक बनाया। नन्द अपनी पत्नी सुन्दरी के प्रणय-पाश को तोड़ना नहीं चाहता था । बुद्ध के एक शिष्य आनन्द ने अपने उपदेशों के द्वारा नन्द को प्रेरित किया कि वह भिक्षुक बने और बद्ध के निरीक्षण में कार्य करे। बुद्धचरित में गौतमबुद्ध का जीवन-चरित है । बुद्ध का जीवन-चरित सुप्रसिद्ध है, अतः यहाँ देने की आवश्यकता नहीं है । इस महाकाव्य के चीनी और तिब्बती भाषा के अनुवादों से ज्ञात होता है कि इसमें २८ सर्ग थे। १९वीं शताब्दी में अमृतानन्द ने विद्यमान १३ सर्गों में अपनी अोर से ४ सर्ग और जोड़कर बुद्ध के काशी में प्रथमोपदेश तक की कथा पूर्ण की है। इस प्रकार मूल ग्रन्थ के केवल १३ सर्ग ही संस्कृत में उपलब्ध होते
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