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तीसरी डाल स्वामी समन्त-भद्राचार्य इस अंगका इस प्रकार अर्थ करते हैं कि जैनधर्म स्वयं शुद्ध है, पवित्र है, पर उसके धारण करने वालोंमें कोई अन्नानी, अशक्त या मिथ्यात्वी हो, और उसके द्वारा जैन धर्म की निन्दा होने लगे, अपवाद फैल जाय, तो उस निन्दा अपवादको दूर करना उपगृहन अंग है। .. . ६ स्थितिकरण अंग-विषय-कषायादि निमित्तसे सम्यग्दर्शन या सम्यक् चारित्रसे डिगते हुए पुरुषोंको पुनः उसीमें स्थिर करना सो स्थिति करण अंग है। जो धर्मसे पतित हो चुका है, या जो भ्रष्ट होने वाला है, उसे जिस प्रकार बने उसी प्रकारसे धर्ममें दृढ़ करना, स्थिर करना सम्यग्दृष्टिका एक खास अंग है। यह अंग व्यक्ति और समाज का महान् उपकारक है। धर्म
और धर्मात्माओं की स्थिति इसी अंग पर अवलम्बित है । यह स्थिति-करण कहीं पर केवल वचनमात्रकी सहायतासे, कहीं
“ स्वयंशुद्धस्य मार्गस्य बाताशक्तजनाश्रयाम् । चाच्यतां यत्प्रमार्जन्ति तद्वदन्त्युपगृहनम् ।। १५ ॥
रत्नकरंडश्रावकाचार * दर्शनाच्चरणाद्वापि चलतां धर्मवत्सलैः। मत्यवस्थापनें प्राज्ञैः स्थित क णमुच्यते ।। १६ ॥
. रत्नकरंडश्रावका०. ., कफायविषयादिभिर्धर्मविध्वंसकारणेषु - सत्स्वपि धर्मप्रच्यवनरक्षणे स्थितिकरणम् ।
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भावपाहुड टीका गा०.७७ मावपाका