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छहढाला
भी प्राणीको रंचमात्र भी कष्ट न हो । सच्चा गुरु वह है जो विषयोंकी आशा तृष्णासे रहित हो, सदा ज्ञान-ध्यान और तपमें लवलीन रहता हो । इसी प्रकार सच्चादेव वह है जिसने राग-द्वेष मोहको पूरी तौरसे विजयकर वीतरागका महान् पद पा लिया है, अज्ञान भावका सर्वथा नाशकर सर्वज्ञ बन गया है और जो प्राणिमात्रके सच्चे हितका उपदेशक है । इस प्रकारके लक्षणोंसे रहित जो देव, गुरु या धर्म हैं उन्हें मिथ्या ही जानना चाहिए । इन कुगुरु, कुदेव और कुधर्मकी सेवा-आराधना को गृहीत मिथ्यादर्शन कहा गया है ।
अब आगे गृहीत मिथ्याज्ञानका स्वरूप कहते हैं एकान्तवाद - दूषित समस्त विषयादिक पोषक अप्रशस्त । कपिलादि-रचित श्रुतको अभ्यास, सो है कुबोध बहुदेन त्रास १३
अर्थ -- जो शास्त्र एकान्तवाद से दूषित हैं, पंचेन्द्रियों के विषयों के पोषक हैं, हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार आदि निंद्य कृत्योंके प्ररूपक होनेसे अप्रशस्त ( खोटे) हैं, ऐसे कपिल आदि के द्वारा बनाये गये शास्त्रोंका अभ्यास करना, पढ़ना-पढ़ाना सो गृहीत मिथ्याज्ञान है, और यह बहुत दुःखों का देने वाला है ।
विशेषार्थ - प्रत्येक वस्तुका स्वरूप अनेक धर्मोसे युक्त है, प्रत्येक पदार्थ द्रव्य अपेक्षा नित्य है, पर्याय अपेक्षा अनित्य है. परन्तु इस यथार्थ रहस्यको न समझकर यदि कपिलने पदार्थको सर्वथा नित्यही माना है, तो बौद्धने उसे सर्वथा अनित्य माना है,