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प्रथम ढाल
बालपनेमें ज्ञान न लह्यो, तरुण समय तरुणी-रत रह्यो । अर्धमृतक सम बुढ़ापनो, कैसे रूप लखै आपनो ॥१५॥ __ अर्थ मनुष्यगतिमें आकर यह जीव सबसे पहले तो नौ मास माताके उदरमें निवास करता है, वहां पर शरीरके अंगोंके संकुचित रहनेसे भारी दुःखको प्राप्त करता है । फिर माताके उदर से बाहर निकलते हुए जिन भयंकर घोर दुःखोंको पाता है, उनका कहनेसे अन्त नहीं आ सकता है। यदि किसी प्रकार जीवित बाहर निकल भी आया और बचपनके रोगोंके द्वारा मरने से बच भी गया, तो बालपने में विद्या का अभ्यास कर ज्ञानउपार्जन नहीं किया, जवानी में स्त्रीके साथ विषय-भोग में मस्त रहा। धीरे-धीरे बुढ़ापा आगया, जोकि अधमरेके समान है, जिसमें कि मनुष्य अपना कुछ भी कल्याण नहीं कर सकता, फिर भला बतलाइए कि किस अवस्था में यह जीव अपने आत्मस्वरूपकी पहचान करे ?
विशेषार्थ--मनुष्य भवकी प्राप्तिको आचार्यों ने इस प्रकार अत्यन्त कठिन बतलाया है जिस प्रकार कि बालूके समुद्र में गिरी हुई हीराकी कणीको पुनः प्राप्त करनः । इस प्रकार के अतिदुर्लभ मनुष्य भवको पानेके बाद भी अनेकों जीव तो गर्भावस्थामें ही मृत्युको प्राप्त हो जाते हैं । यदि भाग्यवश जीवित बाहर निकल भी
आया, तो बाल्यावस्था में उत्पन्न होने वाले सैकड़ों रोगोंसे ग्रस्त होकर जीवन-मरणके संशयमें झूलता रहता है । भाग्योदय से ...