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छहढाला
समाधान - विवक्षित शरीरकी एक भव सम्बन्धी आयुको भवस्थिति कहते हैं, तथा उसी विवक्षित शरीरकी नाना भवसम्बन्धी स्थितिको कार्यस्थिति कहते हैं । जैसे द्वीन्द्रिय जीवोंकी एक भव-सम्बन्धी उत्कृष्ट आयु बारह वर्षकी है, यह भवस्थिति है। तथा कोई जीव द्वीन्द्रियकी एक पर्यायकी आयुको पूरा कर मरा और फिर द्वीन्द्रियों में उत्पन्न हुआ, पुनः मरा और फिर द्वीन्द्रियोंमें उत्पन्न हुआ, इस प्रकार लगातार एक ही कायके धारण करनेके कालको कार्यस्थिति कहते हैं । इस प्रकारकी द्वीन्द्रियादि विकलेन्द्रिय जीवोंकी कायस्थिति असंख्यात हजार वर्षकी है।
अब ग्रन्थकार पंचेन्द्रिय तिर्यचोंके दुःखोंका वर्णन करते हैं:कबहूं पंचेन्द्रिय पशु भयो, मन विन निपट अज्ञानी थयो । सिंहादिक सैनी है कूर, निबल पशू हति खाये भूर* ||७|| कबहूं आप भयो बलहीन, सबलनिकरि खायो प्रतिदीन । छेदन भेदन भूख प्यास, भार- बहन, हिम, आतप त्रास ॥८॥
* तत्तो णीसरिऊणं कहमवि पंचिन्दियो होदि ॥ २८६ ॥ सोमण विगो राय माणं परंपि जाणेदि । ग्रह मणसहि होदिहुं तहवि तिरिक्खों हवेरुद्दो ||२८७॥
--स्वामिका०