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पाँचवीं ढाल
ग्रन्थकार इस ढालमें बारह भावनाओं का वर्णन करेंगे बारह भावनाओं का चिन्तवन कौन और क्यों करता है तथा इनके चिन्तवनसे क्या लाभ है इस बातको दो पद्यों से ग्रन्थकार वर्णन करते हैं:
मुनि सकलवती बड़भागी, चैराग्य उपावन माई, चिन्तौ अनुप्रेक्षा भाई ॥ १ ॥ इन चिन्तत समसुख जागै, जिमि ज्वलन पवनके लागे। जब ही जिय श्रातम जानै, तब ही जिय शिव सुख ठानै ॥२॥
भव-भोगनते वैरागी ।
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अर्थ-बड़े भाग्यवान् और सकल चारित्रके धारक मुनिराज संसार और इन्द्रिय भोगों से विरागी रहते हैं, इसलिए हे भाई तुम्हें भी वैराग्य उत्पन्न करनेके लिए अनुप्रेक्षा (बारह भावना) का चिन्तवन करना चाहिए, क्योंकि इन बारह भावनाओंका चिन्तवन करनेसे समता रूपी सुख प्रगट होता है जैसे कि पवन के लगने से अग्नि की ज्वाला प्रगट होती है । जब यह जीव आत्माके स्वरूप को पहिचान लेता है तभी वह मोक्ष-सुखका अनुभव कर पाता है । कहनेका सारांश यह है कि समता भाव को जागृत करनेके लिए बारह भावनाओंका चिन्तवन करना अत्यन्त आवश्यक है, अत एव उन्हें निरन्तर भावे ।