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चौथी ढाल
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क्या बराबरी कर सकता है, इत्यादि प्रकार से ईष्याभाव रखना, सो मात्सर्य नामका पांचवा अतिचार है * ।
इस प्रकार श्रावकके बारह व्रतोंके पांच-पांच अतिचारोंका वर्णन किया । श्रावक को चाहिए कि उक्त व्रतों को पालते हुए अतिचारोंको पूर्ण सावधानी के साथ बचाते रहें, अन्यथा व्रतमें . निर्मलता नहीं रह सकती है ।
ग्रन्थकारने अन्तमें जिस समाधि मरणकी ओर संकेत किया है। उसका यहां पर संक्षिप्त वर्णन किया जाता है: - जीवनका अन्त
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जाने पर, या जिसका प्रतीकार ( इलाज आदि ) संभव न हो ऐसे रोग, उपसर्ग, बुढ़ापा आदि आजाने पर धर्मकी रक्षाके लिए अपने शरीर के त्याग करने को संन्यास कहते है । समाधिमरण और सल्लेखना भी इसके नाम हैं । सम्यक् प्रकार शरीर के न्यास ( त्याग ) को संन्यास कहते हैं । सावधानी पूर्वक मरना सो समाधिमरण है । काय और कषायों को भले प्रकारसे कृश करना सल्लेखना कहलाता है ।
★ प्रयच्छन्नच्छमन्नादि गर्व मुद्वहते यदि ।
दूषणं लभते सोऽपि महामात्सर्यसंज्ञकम् ||२३०॥
लाटीसंहिता सर्ग ६
"उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च निष्प्रतीकार । धर्माय तनुविमोचनमाहुः तल्लेखनामार्याः ।। सम्यक्काककषायलेखना सल्लेखना ॥
रत्नक •
सर्वार्थसिद्धि ० ७ सूत्र २०.