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प्रथम ढाल
sta न्थकार निगोदके दुःखका वर्णन कर वहांसे निकलनेका क्रम बताते हैं
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एक श्वासमें दस बार, जन्म्यो मर्यो भर्यो दुख भार । निकसि भूमि जल पावक भयो, पवन प्रत्येक वनस्पति थयो * ॥ ५
अर्थ - निगोदिया जीव एक श्वासमें अठारह बार जन्म लेता है, मरण करता है और जन्म-मरण -जन्य दुःखके महान् भारको सहन करता है । भाग्यवशात् काललब्धि आने पर वह वहांसे निकल कर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और प्रत्येक वनस्पतिकी पर्यायोंको प्राप्त होता है. ॥ ५ ॥
विशेषार्थ–संसारमें मरणका दुःख ही सबसे बड़ा दुःख माना गया है जिन जीवोंको इतनी शीघ्रतासे मरण करना पड़ता है, उनके दुःखको सर्वज्ञके सिवाय और कौन जान सकता है । निगोदिया जीव जन्म-मरण - जन्य जिस भारी यातनाको सहन करते हैं, वह वचनातीत है । उनके दुःखकी. कल्पना उस पुरुषसे की जा सकती है, जिसके हाथ-पैर रस्सीसे खूब कस कर बांध दिये जायं और आंख, नाक, कान, मुँह को कपड़ा आदि भर कर बिलकुल बंद कर दिया जाय, जिससे कि वह बोल न सके । फिर उसके गलेमें रस्सीका फंदा डाल कर किसी ऊंचे पेड़ आदि पर लटका दिया जाय और ऊपरसे बेंतोंसे खूब पीटा जाय, तो वह बेचारा न रो सकता है, न बोल
* तत्तो णीसरिऊखं पुढवीकायादिश्रो होदि ॥ २८४ स्वामिका० ||