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चौथी ढाल - अर्थ-उपर्युक्त प्रकारसे सम्यग्ज्ञानको धारण कर पश्चात् सम्यक् चारित्रको दृढ़ता-पूर्वक धारण करे । सम्यक चारित्रके दो भेद कहे गए हैं:-एक देश चारित्र, और दूसरा सकल चारित्र । पापास्रवके कारणभूत हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँचो पापोंके एक देश या स्थूलत्यागको देशचारित्र कहते हैं इसके धारक श्रावक कहलाते हैं । मन, वचन, काय, कृत, कारित
और अनुमोदनासे उन पापोंके सर्वथा त्याग को महाव्रत कहते हैं। इसके धारक मुनि कहे जाते हैं। देश चारित्रके मूलमें तीन भेद हैं:-अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत । इनमें गुणवतके तीन भेद और शिक्षाबतके चार भेद होते हैं । इस प्रकार ये सब मिलकर श्रावकके बारह व्रत कहलाते हैं। अब इनका क्रमसे स्वरूप कहते हैं:
१ अहिंसाणुव्रत-मन, वचन, काय और कृत, कारित अनुमेद से संकल्प पूर्वक त्रसजीवोंकी हिंसाका त्याग करना और बिना प्रयोजनके स्थावर जीगेका भी घात नहीं करना सो अहिंसाणुव्रत है । इस व्रतका धारक श्रावक गृहस्थीके आरम्भ आदिसे होने वाली हिंसाका त्यागी नहीं होता। इसी प्रकार व्यापार
आदिके करनेमें जो आने जाने आदिके निमित्तसे हिंसा होती है, गृहस्थ उसका भी त्यागी नहीं होता । आततायो, शत्रुओं या विप
*संकल्यात्कृतकारितमननाद्योगत्रयस्य चरसत्वान् । न हिनस्ति यत्तदाहुः स्थूलवधाद्विरमणं निपुणाः ।।
रत्न