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चौथी ढाल
तीसरी ढालमें सम्यग्दर्शन का वर्णन कर और उसके धारण करनेका उपदेश देकर अब ग्रन्थकार सम्यग्ज्ञानके धारण करनेका उपदेश देते हुए उसके स्वरूपका वर्णन करते हैं:दोहा
सम्यक् श्रद्धा धारि पुनि, सेवहु सम्यग्ज्ञान | स्व-पर अर्थ बहु धर्म जुत जो प्रकटावनभान ॥
अर्थ- सम्यग्दर्शनको धारण कर फिर सम्यग्ज्ञान को धारण करना चाहिए । यह सम्यग्ज्ञान अनेक धर्मों से युक्त स्व और परको अर्थात् अपनी आत्मा को और परपदार्थों को ज्ञान करानेके लिए सूर्यके समान है ।
भावार्थ- जैसे सूर्य अपने आपको प्रकाशित करते हुए अपने से भिन्न अन्य समस्त पदार्थों को प्रकाशित करता है, इसी प्रकार सम्यग्ज्ञान भी अपनी आत्माको और शेष समस्त पदार्थों को प्रकाशित करता है ।
सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान एक साथ उत्पन्न होने पर भी भिन्न भिन्न हैं, एक नहीं; इस बात का वर्णन करते हैं:
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सम्यक् साथे ज्ञान होय, पै भिन्न
अराधौ,
लक्षण श्रद्धा जान, दुहू में भेद
वाधौ
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