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________________ निरवद्य क्रियाधिकारः। ण इण पूर्वले दृष्टांते. गो० गोशालो. म० मखलिपुत्र. म० माहरा ५० वध ने अर्थे. स० शरीर में विषे ते तेज लेश्या प्रति मूकी नें. ह. हत तेज थयो. जा. यावत. वि. विनष्ट तेम थयो. त० ते भणी. छा० छांदे. स्वाभिप्राये करो ने यथेच्छाई करी में. तु तुम्हें. गो. गोशाला. म० मंखलीपुत्र प्रति. ध० धर्मचोयणा तिणें करी ने प० पड़िचोयणा घो।। अथ इहां भगवान् साधां ने कह्यो–जे गोशाले मोने हणवा ने तेजू लेश्या शरीर थी काढी. ते माटे हिवे तेजू लेश्या रहित थयो छ। तिण सूं तुमारे छांदे छै। हे साधो ! गोशाला सूं धर्मचोयणा करो तेजू लेश्या रो भय मिट्यो। जद धर्म चोयणा रो उदेरी ने कह्यो। अने पहिला बा ते बालवा रा कारण माटे । पिण गोशाला संबोल्यां विराधक थास्यो इम कह्यो नहीं। ते माटे सर्वानुभूति सुनक्षत्र पिण पंडित मरण आरे करी में बोल्या छै। अने जो आज्ञा बाहिरे हुवे तो भगवान् तो पहिला जाणता हुन्ता, जे हूं वरजू छं। पिण ए तो बोलसी तो आज्ञा बाहिरे थासी, इम बोल्यां आज्ञा .बाहिरे जाणे तो भगवान् बोलवा रो ना क्या ने कहे। जो आज्ञा बाहिरे हुन्ता जाणे, तो भगवान् साधां ने आज्ञा बाहिरे क्यूं कीधा। तथा वली बोल्यां पछे निषेधता। जे म्हारी आज्ञा बाहिरे बोल्या. इसो काम कोई साधु करज्यो मती। इम कहिता, इम पिण कह्यो नहीं। भगवन्त तो अपूठा दो साधां ने सराया विनीत कह्या छै। ते पाठ लिखिये छै। ___ एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी पाईण जाणवए सब्बाणुभूई णामं अणगारे पगइ भदए जाव विणीए सेणं तदा गोसालेणं मखलिपुत्तेणं भासरासी करेमाणे उड्ढं चंदिम सूरिय जाव वंभलंतग महा सुक्के कप्पे वीई वइत्ता सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववण्णे। . (भगवती श०१५ )
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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