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________________ विनयाऽधिकारः । રા सीहास भुट्टे २ ता. पाय पीढाओ पच्चो महइ २ त्ता पाउया ३ मुयइ २ ता एग साडिय उत्तरा संग कोइ २ त्ता अंजलि मउलि यग्ग हत्थे चकरयणाभिमुहे सत्तटुपयाई अगच्छइ २ त्ता वामंजाणु अंधे २ ता दाहिणं जागु धरणि तलसि हिडु करयल जाव अञ्जलि कट्टु चक्कयणस्स परणामं करेइ २ तां । ( जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति ) सिहासन की. अ० उठे उठी ने पा० वाजोट थी उतरे उतरी ने पा० पग नी mast तथा परखी मूके मूकी ने एं० एक शाटिक व नों उत्तरासन करे करी में अ० हाथ बें जोड़ो ने मस्तक ने धागे हाथ चढ़ानी ने एहवो थको चक्र रत्ने सन्मुख ते सामुही साव धाठ पगला. जाई जाई ने. वा० डावो गोडो ऊंचो राखे राखी ने दा० जीमयो गोड़ो. ध० धरती तल ने बिने. णि थाली क० करतल यावत हाथ जोड़ो नं. ० चक्ररत्र नं. १० प्रणाम कीनें. इहां चक्र: उपनों सुण्यो तिहां भरत जी इसो बिनय कीधो । पछे चक्र कने भावी पूजा कीधी, ते संसार रीते, पिण धर्म हेते नहिं । टिम अम्बड नें चेलां पिण आप रो निज गुरु जाणी गुरु नी रीति साचवी । पिण धर्म न जाण्यो, जब कोई कहे – सन्मुख मिल्यां तो रीति साचत्रे, पिण पाप जाणे तो पर पूठ विनय क्यूं कियो । तेहनो उत्तर-भरत जी चक्र उपनों सुणतां पाण हर्ष सन्तोष पाम्या, विकसाथ मान थइ परपूठे पिण पतलो विनय कियो ते संसार नी रीति ते माटे । तिम अस्त्र ना चेलां रिण संसार ना गुरु जाणी भगलो स्नेह तिण सूं आप री afree ed विनय नमस्कार कियो पिण धर्म हेते नहीं । डाहा हुवे तो विचारि जोजो । इति ५ बोल सम्पूर्णा । ३६
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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