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________________ भ्रम विध्यसनम् । RARArvinnarva धर्माचार्य १। अने सन्यासी योगी आदि ना गुरां में कुप्रावचनीक द्रव्य धर्माचार्य कहीजे २। अने साधु रा वेष में आचार्य वाजे ते वेषधासां रा आचार्य में लोकोत्तर द्रव्ये धर्माचा काना। ३६ गुणा सहित ने भाये धर्माचार्य कहीजे । अने तीजा पाचार्य कला ते भाय धर्माता अश्री कयो। कुप्रावचनीक धर्माबार्य से दायक मने लोकोत्तर द्रव्य धर्माचार्य रो कथन रायपसेणी में आचार्य कहा. त्यां में भी। हां तो कला. शिल्प. लौकिक. धर्माचार्य, अने' भावे धर्माचार्य पतीनां से कथा लियो छै। ते माटे ए० ३ आचार्य में अम्वड नथी । तथा डाणा टाणे चार प्रकार का आचार्य कह्या-चाण्डाल रा करहिया समान. वेश्या ना करोया समान. लेट रा करण्डिया समान. राजा ना करडिया समान. तो चाण्डाल रा करंडिया समान. अने वेश्या ना करण्डिया समान. किसा आचार्य में लेवा ! तथा उपासक दशा अ०७ शकडाल पुत्र रो धर्माचार्य गोशाला ने कह्यो। ते पिण यां तीनां में. कलाचार्य. शिल्पाचार्य. धर्माचार्य, में नथी। ते माटे अबड ने धर्माचार्य कहो-ते पिण आगले कुप्रावचनीक रो धर्माचार्य पणो धालो ते आधी कयो। पिण भावे धर्माचार्य नथी । इणन्याय चेला अम्बड़ ने कुप्रावचनीक धर्माचार्य जाणी वांयो पिण धर्माचार्य जाणी वांघो नहीं। तिवारे कोई कहे-ए संधारो करवा त्यारी थया ते वेलां ए पाप रो कार्य क्यू कीधो तेहनों उत्तर-जे तीर्थकर दीक्षा लेवे तिवारे १ वर्ष ताई नित्य १ फरोड़ शने आठ लाख सोनइया दान देवे। वली दीक्षा लेतां आठ हजार चौसठ कलशा थी स्नान करे। ए संसार नी रीति साचवे पिण धर्म नहीं। तिम अम्बसु मा चेला पिण संसार नी रीति साचवी पिण धर्म नहीं। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ४ बोल सम्पूर्ण। तथा सूर्याभ देव सम्यग्दृष्टि प्रतिमा आगे "नमोत्थुणं गुण्यो ते लौकिक रीते पिण धर्म हेते नहीं। तथा भरत जी पिण चक्र नों विनय कियो। ते पाठ लिखिये छ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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