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अति रमणीये काव्ये
अति रमणीये वपुषि
पिशुनो दूषण मन्वेषयति बणमिव मक्षिका निकर:
अति सुन्दर काव्य में भी विशुन ( धूर्त्त पुरुष ) दोषों को ही खोजता रहता है । जैसे कि अति सुन्दर शरीर में भी मक्षिकाएं केवल व्रण ( घाव ) को ही खोजतीं हैं ।
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