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________________ २१० भ्रम विध्वंसनम् । माणे चउसु आभिणिवोहियणास सुअरणाण ओहिणाण मग पजवणासु होजा ॥ ( भगवती श० २५ उ० ६ ) क० कषाय कुशील नी पृच्छ. हे गौतम! दो० बे ने विषे. ति० त्रिण ने विषे. चा० चार विषे. दे० वे ज्ञान ने विधे होय. तिवारे. अ० मतिज्ञान ने षिषे. सु० श्रुतज्ञान ने विषे, ति० त्रिया ज्ञान ने विषे हुई तित्रारे. प्रा० मतिज्ञान ने विषे सु० श्रुतज्ञान ने दिषे. श्रो० अवधिज्ञान ने विषे हुई अ० अथवा त्रिण ने विषे हुइ तिवारे त्रिण. श्रा० मतिज्ञान ने विषे. सु० श्रुतज्ञान ने विषे म० मन पर्यव ने विषे च० चार ने विषे हुइ तिवारे. श्र० मतिज्ञान ने विषे सु० श्रुतज्ञान ने विषे श्रो० अवधि ज्ञान ने विषे. म० मन पयव ज्ञान ने विषे हुई अथ अठे कषाय कुशील नियंटे जघन्य २ ज्ञान अनें उत्कृष्टा ४ ज्ञान कह्या । अनें पुलाक वक्कुस पडि सेवणा में उत्कृष्टा मति श्रुत अवधि ३ ज्ञान कला | पिण मन पर्यव ज्ञान न कहो। हिवैं शरीर द्वारे करी कहे हैं। कवाय कुसीले पुच्छा. गो० ! तिसुवा चउसु वा पंचसु वा होना तिसु उरालिये ते या कम्मए सु होजा चउसु होमाणे चउसु उरालियं. वेडव्विह तेया कम्मएसु होजा पंचसु होमाणे उरालिय वेड व्विय आहारग तेयग कम्मएसु होजा । ( मगवती शतक २५ उ० ६.) क० कषाय कुशोल मी पृच्छा गो० हे गौतम! ति० त्रिश चार. प० पांच शरीर हुईणि शरीर ने विषे तिवारे हुई. उ० औौदारिक. ते तेजस क० कार्मण हुइ च० चार शरीर में विषे हुह' तिवारे चार, उ० औौदारिक. वे० वैक्रिय. ते० तैजस. क० कार्मण ने त्रिषे हुइ पं० पांच शरीर ने विषे हुइ प्रो० श्रदारिक. वे० वैक्रिय. श्रा० आहारिक. ते० तेजस क० कार्मण शरीर ने विधे हुई.
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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