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________________ प्रायश्चित्ताऽधिकारः। . २०१ - - एवा मेव समणाउसो जाव णिग्गंथो वा २ ओसरणे - जाव संथारए. पमत्ते विहरइ. सेणं इह लोए चेव बहुणं सम णाणं ४ हीलणिज्जे संसारो भाणियव्वो ॥२॥ (ज्ञाता अ०५) ए० इण दृष्टान्त. स. हे श्रायुषावन्त श्रमणों! जी० जिहां लगे. णि म्हारो साधु साध्वी. उ० उसनो पासत्थो हुवे. जा० यावत्. सं० संथारा में विषे. ५० प्रमादी पणे वि. विचरे. से० ते. इ. इण मनुष्य लोक में विषे. ब० घणा साधु साध्वी श्रावक श्राविका माहि. हि हेलवा निन्दवा योग्य. सं० चार गति रूप संसारे भ्रमण कहियो. इहां भगवन्ते साधां ने कह्यो जे म्हारो साधु साध्वी सेलक ज्यूं उसनो पासत्थो ढीलो हुवे, ते ४ तीर्था में हेलवा योग्य निन्दवा योग्य छै । यावत् अनन्त संसारी हुवे । तो जे सेलक ने हेलवा योग्य निन्दवा योग्य कयो , उसनो पासत्थो कुशीलियो प्रमादी संसत्तो कह्यो। एहनों पिण प्रायश्चित्त चासो नहीं । पिण लियो इज हुस्ये। तथा सेलक नी व्यावच पंथक करी। तेहनों पिण प्रायश्चित्त आवे । ते किम्-ए सेलक तो उसनो पासत्थो कह्यो। अनें निशीथ उद्देश्य १५ पासत्था ने अशनादिक दीधां चौमासी प्रायश्चित्त कह्यो। ते नाटे ते पाठ लिखिये छै । जे भिक्खू पासस्थस्स असणं वा ४ देइ देयंत वा साइजइ। (निशीथ उ०१५ बो०५०) जे० जे कोई साधु साध्वी. पा० पासत्था ने. अ. अशनादिक ४ श्राहार. दे० देवे. दे. देवता में अनुमोदे. अर्थ अठे पासत्था ने अशनादिकं देवे देता ने अनुमोदे तो चौमासी दंड कह्यो भने सेलक ने शाता में पासत्थों कयो। ते सेलक पासत्था कुशीलिया ने
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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