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________________ २०० भ्रम विध्वसनम् । - vvvvvwww . a v urvvvvvvvvvvvvvvvvv..........wure ततेणं से सेलए तंसि रोयायंकसि उबसंतंसि समाणं सितंसिविउल असणं पाणं खाइमं साइमं मजपाणएय मुच्छिये गढिए गिद्धे अज्झोववन्ने पासत्थे पासत्थ विहारी एवं उसन्ने कुसीले पमत्ते संसत्त विहारी उवलद्ध पीढ फलग सेना संथारए पमत्तेवावि विहरइ. नो संचाएइ. फासुएसणिणज पीढ़ फलग पञ्चप्पिणित्ता मंड्डुयं चरायं आपुच्छेत्ता वहिया जणवय विहारं वित्तए ॥७॥ ज्ञाता ५०५) त तिवारे. से० ते सेलकाचार्य. तं० ते रोग पातक. उ० उपशम्यां गयां थकां रोग. स. समस्त शरीर सम्बन्धी वाधा उपशमी. तं० ते. वि० विस्तीर्ण घणो अन्न पाणी खादिम श्रादि देई ने राज पिड ने विषे तथा मद्य पान ने विषे. मु० मूर्छा पाम्यो. ग अत्यन्त मूर्खयो. गि गृध्र थयी. अ. सन मप मन थइ रह्यो. उ० थाकतो चारित्र क्रिया इं आलसू थयो थको विहार थी, इम ज्ञान दर्शनादिक प्राचार मूकी पासत्थो रह्यो माठो ज्ञानादिक आचार तेहनों. ५० पांच विध प्रमाद करी युक्त थयो. स. कदाचित क्रिया कदाचित् पासत्थो संसक्त तेहवो ही विहार छै जेहनों. उ० ऋतु बन्ध काले. पीठ फलक शय्या सन्थारो लेवो छ तेहनों. प० प्रमादी थयो सदा वारवा थो एहवा विवरे. णो पिण समर्थ नहीं. फा० प्रांशुक एषणीक पीढादिक पाछा सूपी ने मंडूक राजा प्रते. प्रा० पूछी ने व० वाहिर देश मध्ये विहार करिवा मन हुवो. अथ अठे सेलक ने उसनो पासत्थो कुसीलियो प्रमादी संसत्तो कह्यो । पाड़िहारिया पीढ फलक शय्या सन्थारो आपी विहार करवा असमर्थ ऋह्यो। एहनों प्रायश्चित्त आवे के न आये। ए तो प्रत्यक्ष पासत्था कुशीलिया पणा नों ढीलापणा नों प्रायश्चित्त आवे। पिण सूतमें सेलक ने प्रायश्चित्त चाल्यो नहीं। पिण लियो इज होसी। वली सेलक ज्यूं ढीलो पड़े तिण ने हेलवा निन्दवा योग्य कह्यो। ते पाठ लिखिये छै:।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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