SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुकम्पाऽधिकारः। - - पली सूर्या भे नाटक पाड्यो ते पिण भक्ति कही छै. ते पाठ लिखिये छ। तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाणं भत्ति पुबग गोयमाइसमणाणं निग्गंधाणं दिब्बं दिबिटिं वत्तीसविहिं नहविहिं उवदंसित्तए। ततेणं समणे भगवं महावीरे सुरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे सुरियाभस्त देवस्स एयमढें नो आढाए नो परिजाणइ तुसणीए संचिटुइ । ( राप्रश्रेणी) त० ते. इ० वांछुछु. दे. हे देवानु प्रिय ! त• तुम्हारी भक्तिपूर्वक. गो० गोतमादिक स० श्रमण नि० निग्रन्थ ने. दि० दिव्य प्रधान. दे० देवता में ऋद्धि व० वत्तीस बन्धन नटनाटक विधि प्रते. उ० देखवाड़ बो वांछ. त० तिवारे. स० श्रमण भगवन्त. म० महावीर. सू० सूर्याभ देव. ए० इम. बु० कहे थके. सू० सूर्याभ देवता. ए० एहवा वचन प्रते. नो० अादर न देवे नो० मन करनें भलो न जाणे. प्राज्ञा पिण न देवे. अ. अणबोल्या थकां रहे. अथ अठे सूर्या भरी नाटक रूप भक्ति कही। तेहनी भगवान् आज्ञा न दीधी। अनुमोदना पिण न कीधी। अने:सूर्याभ वंदना रूप सेवा भक्ति कीधी। तिहां एहवो पाठ छै। “अब्भणुणाय मेयं सुरियामा” एवं वन्दना रूप भक्ति री म्हारी आज्ञा छै। इम आज्ञा दीधी तो ए वन्दना रूप भक्ति निरवदद्य छै ते माटे आज्ञा दीधी। अने नाटक रूप भक्ति सावदय छै। ते माटे आज्ञा न दीधी. अनुमोदना पिण न कीधी। जिम सावदय निरवदय भक्ति छै–तिम अनुकम्पा पिण सावदय निरवदय छै ।:कोई कहे. सावध अनुकम्पा किहां कही छै तेहने कहिणो सावदय भक्ति किहां कही छै। ए नाटक रूप भक्ति कही पिण इम न कह्यो-ए सावध भक्ति छै । पिण ए भक्ति आज्ञा बाहिरे छ। ते माटे जाणिये। तिम अनुकम्पा नी पिण आज्ञा न देवे ते सावध जाणवी। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ४१ बोल सम्पूर्ण ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy