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________________ अनुकम्पाऽधिकारः। - - सुकाल ६ उपद्रव रहित पणो ७ ए सात बोल वांछणा बा । (१) प्रथा आचा. राङ्ग श्रु० २ ० २ उ १ गृहस्थ माहोमाहि लड़े त्यांने मार तथा मतमार इम वांछणो वो ते पिण राग द्वेष आश्री बज्यों छै । (१६) तथा आचारांग श्रु. २ अ० २ उ० १ कह्यो गृहस्थ तेउकाय रो प्रारम्भ करे, तिहां अग्नि प्रज्वाल तथा मत प्रज्वाल इम वांछणो नहीं। इहां अग्नि मत प्रज्वाल इम पांछणो वौँ ते पिण जीवण रे अर्थ घांछणो वो छ । (१७) तथा सूयगडाङ्ग श्रु० २ अ० ६ गा० १७ आर्द्रकुमार कयो भगवान् उपदेश देवे ते अनेरा ने तारिवा तथा आपरा फर्म खपाया उपदेश देवे पिण असंयती रे जीवण रे अर्थे उपदेश देणो न कह्यो। (१८) तथा उत्तराध्ययन १० ६ गा० १२ १३ १४ १५ मिथिला नगरी वलती जाण ने नमि ऋषि साहमोइ जोयो नहीं, तो जीवणो किा वांछनो । (१६) तथा उत्तराध्ययन अ० २१ गा० ६ समुद्रपाल चोर ने मारतो देखी ने गर्थ देई छोडायो नहीं। (२०) तथा बलो निशीथ उ० १३ गृहस्थ मार्ग भूला ने रस्तो वतावे तो चौमासी प्रायश्चित्त फह्यो । (२१) तथा निशीथ उ० १३ गृहस्थ नी रक्षा निमित्त मंत्रादिक भूति कर्म करे तो चौमासी प्रायश्चित कह्यो। (२२) तथा निशीथ उ० ११ पर जीव में डरावे इरा. पता ने अनुमोदे तो चौमासी प्रायश्चित्त कह्यो । (२३) तथा ठाणाङ्ग ठाणे ३ उ० ३ हिंसा करता देखी ने धर्म उपदेश देइ समझावणो तथा मौन राखणी। तथा उठिने एकान्त जाणो ए ३ बोल कह्या. परं जोरावरी तूं छोड़ावणो कह्यो नहीं। (२४) तथा भगवती श० ७ उ०१० अग्नि लगायां घणो आरम्भ घणो आध्रव कह्यो अने बुझायां थोड़ो आरम्भ थोड़ो आश्रव कह्यो पिण धर्म न कह्यो । (२५) तथा भगवती श० १६ उ०३ साधुरी अर्श ( मस्सा ) छेदे ते वैद्य में क्रिया कही पिण धर्म न कयो। (२६) तथा निशीथ ७० १२ में बोल १-२ त्रस जीवनी अनुकम्पा आण ने बांधे बांधता में अनुमोदे । छोटे छोड़ता ने अनुमोदे तो चौमासी प्रायश्चित्त कह्यो। (२७) तथा आचारांङ्ग श्रु० २ ० ३ उ० १ नावा में पाणी आवतो देखी घणा लोकां ने पाणी में डूबता में देखी में साधु ने ते छिद्र गृहस्थ ने बतावणो नहीं। इम प्रह्यो। (२८ : इत्यादिक पणे ठामे असंयती रो जीवणो धांछणो बयों छै। अनं
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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