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________________ दानाऽधिकारः । केतला एक कहे-ने श्रावक सामायक में साधु ने बहिरावे तो सामायक भांगे , ते भणी सामायक में साधु ने वहिरावणो नहीं ते किम श्रावक सामायक में जे द्रव्य वोसराया छै ते द्रव्य आज्ञा लियां बिना साधु ने बहिगवणो नहीं। एहवी झूठी परूपणा करे तेहनो उत्तर–सामायक में ११ व्रत निपजे के नहीं। जब कहे ११ व्रत तो निपजे छै। तो १२ मों क्यूं न निपजे व्रत सूं तो ब्रत अटके नहीं। सामायक में तो सावद्य योग रा पचखाण छै। अनें साधु ने बहिरावे ते निरवद्य योग छ। ते भणी सामायक में बहिरायां दोष नहीं। तिवारे आगलो कहे द्रव्य वोसिराया छै। तिण सू ते द्रव्य वहिरावणा नहीं । तेहने इम कहिये ते द्रव्य तो एहनाज छै। ए तो सामायक में छांड्या जे द्रव्य तेहथी सावद्य सेवा रा त्याग छै। अनें साधु ने बहिरावे ते निरवद्य योग छै ते माटे दोष नहीं । जो सामायक में छोड्या जे द्रव्य वहिरावणा नहीं। इभ जाणी आहार बहिरावे नहीं तो तिण रे लेखे जागां री पीठ. फलक शय्या संस्तारा री आज्ञा पिण देणी नहीं। वली त्यां रे लेखे औवधादिक पिण देणी नहीं। वली स्त्री पुत्रादिक दीक्षा लेवे तो निण रे लेखे सामायक में त्यांने पिम आज्ञा देणी नहीं : ए नब जाति र परिग्रह सामायक में वोसिरायो छै। अने स्त्रोआदिक पिण परिग्रह माह छै ते माटे अने स्त्रीआदिक नी तथा जागां आदिक नी आज्ञा दणी तो अशनादिक री विग आज्ञा देणी। अनें हाथां तूं पिण अगनादिक बहिरावणो। अन घोसराया' कही म पाड़े तेहनो उत्तर---ए नव जाति रो परिग्रह सामायक में वोसरायो कहाने पिग देश थकी वोसिराया, परं ममत्य भाव प्रेम रागवन्धन तातो टूटो नथी। पुनादिक थयां राजी पणो आवे छै। ते माटे रहनाज छै पिण सर्वथा प्रकारे ममत्व भाव मिट्यो नथी। ते सूत्र पाठ लिखिये छ । समणावासगस्स णं भंते सामाझ्य कडस्स समणोवासए अस्थमाणस केइ भंडं अवहरेजा सेणं भंते ! तं भंड अणगवेसमाणे किं सयं भंडं अणुगवेसइ. परायगं भंडं अणुगवेसइ. गोयमा ! सयं भंडं अणुगवेसइ नो परायगं भंडं अणुगवेसइ तस्सणं भंते ! तेहिं सीलव्वय गुण वेरमण
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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