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प्राविधि/१४
.. 'श्राद्धदिनकृत्य में तो इस प्रकार कहा है. शय्या-स्थान को छोड़कर भूमि पर बैठकर भावबन्धु जगन्नाथ नवकार-मंत्र का पाठ करना चाहिए।
'यतिदिनचर्या में कहा है
रात्रि के अन्तिम प्रहर में बाल-वृद्ध सभी लोग जग जाते हैं, उस समय सात-आठ बार परमेष्ठि-परम मंत्र पढ़ना चाहिए। नवकार गिनने की रीति " मन में नवकार मंत्र को याद करते हुए शयन का त्याग कर पवित्र भूमि में खड़े-खड़े अथवा पद्मासन आदि आसन में बैठकर पूर्व अथवा उत्तर दिशा के सन्मुख अथवा जिनप्रतिमादि के सन्मुख चित्त की एकाग्रता के लिए कमलबन्ध अथवा कर-जाप आदि से नवकार गिनने चाहिए ।
- हृदय में पाठ पंखुड़ी वाले कमल की कल्पना करनी चाहिए। उसमें कणिका के स्थान पर नमो अरिहंताणं पद की एवं पूर्व प्रादि चार दिशाओं में क्रमश: नमो सिद्धाणं, नमो प्रायरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं-इन चार पदों की एवं आग्नेय आदि चार विदिशाओं में क्रमशः एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासरगो, मंगलाणं च सम्वेसि, पढमं हवइ मंगलं-इन चार पदों की स्थापना करनी चाहिए।
• श्री हेमचन्द्र सूरीश्वरजी म. ने योगशास्त्र के आठवें प्रकाश में नवकार-जाप की उपर्युक्त विधि बताकर इतना विशेष कहा है कि-"मन, वचन और काया की शुद्धिपूर्वक एक सौ आठ नवकार गिनने वाला मुनि भोजन करते हुए भी उपवास का फल प्राप्त करता है।"
नंद्यावर्त और शंखावर्त आदि से किया गया कर-जाप इष्टसिद्धि आदि बहुत फल देने वाला है। कहा भी है-"जो व्यक्ति हाथ के नंद्यावर्त आदि आवत्र्तों पर नवकार मंत्र को बारह की संख्या से नौ बार गिनता है, उसे पिशाच आदि छल नहीं सकते।"
• विपरीत शंखावर्त, नंद्यावर्त अथवा विपरीत अक्षर एवं विपरीत पद से जो एक लाख आदि नवकार का जाप करता है, उसके बन्धन आदि कष्ट शीघ्र नष्ट हो जाते हैं ।
कर-जाप यदि शक्य न हो तो सूत, रत्न या रुद्राक्ष आदि की माला, अपने हृदय की समश्रेणी में रखकर, माला के मेरु का उल्लंघन किये बिना गिननी चाहिए। विशेषतः माला अपने शरीर एवं पहने हुए वस्त्रों से दूर रखनी चाहिए। कहा भी है
___"अंगुलि. के अग्रभाग से, मेरु का उल्लंघन करने से एवं व्यग्रचित्त से किया गया जाप प्रायः अल्प फल वाला होता है।
• भीड़ के बजाय एकान्त में जाप करना विशेष लाभकारी है। उच्चारण की अपेक्षा मौन जाप विशेष लाभदायी है। मौन जाप से भी मानसिक जाप विशेष हितप्रद है।
.. • 'जाप से थकावट लगने पर ध्यान और ध्यान से थकने पर जाप करना चाहिए और दोनों से थकने पर स्तोत्र-पाठ करना चाहिए।' इस प्रकार गुरुवचन है।