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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/२५६ अग्निदेवता आदि की साक्षी में पाणिग्रहण विवाह कहलाता है। लोक में विवाह आठ प्रकार का है (1) आभूषण पहिनाकर कन्यादान करना ब्राह्म विवाह है। (2) धन का खर्च कर कन्यादान करना प्राजापत्य विवाह है। (3) गाय-बैल की जोड़ी के दानपूर्वक विवाह करना आर्ष विवाह है। (4) यजमान ब्राह्मण को यज्ञदक्षिणा के रूप में जो कन्या दी जाती है वह देव विवाह है। ये चार विवाह धर्मानुसारी हैं। (5) माता, पिता व भाई की अनुमति बिना परस्पर अनुराग से जो विवाह होता है, वह गांधर्व विवाह है। (6) शर्त करके कन्यादान करना प्रासुर विवाह है । (7) बलात्कार से कन्या ग्रहण करना राक्षस विवाह है। (8) नींद में सोई कन्या को उठा ले जाना पैशाच विवाह है। ये चार अधर्मानुसारी हैं। यदि वर-वधू की पारस्परिक पसन्द हो तो वे अधर्मानुसारी भी धर्मानुसारी माने जाते हैं। विवाह का फल पवित्र स्त्री का लाभ है। पवित्र स्त्री-प्राप्ति का फल वधू का अच्छी तरह से रक्षण करते हुए उत्तम प्रकार की सन्तति की प्राप्ति है तथा मन सदैव सन्तुष्ट रहता है, गृहकार्य अच्छी तरह से सम्पन्न होते हैं, कुलीनता बनी रहती है तथा देव, अतिथि व बन्धु आदि का अच्छी रीति से सत्कार होता है। * वधू के रक्षण के उपाय * (1) वधू को गृहकार्य में जोड़े रखें। (2) उसके पास मर्यादित धन रहना चाहिए। (3) जाने-माने में अस्वतंत्रता रहनी चाहिए । (4) सदैव मातृतुल्य स्त्रियों के सम्पर्क में रखें। पत्नी विषयक प्रौचित्य का विवेचन पूर्व में किया जा चुका है। विवाह आदि में धनव्यय तथा उत्सव आदि अपने कुल, वैभव व लोक के औचित्य आदि को ध्यान में रखकर करना चाहिए, परन्त बहुत अधिक नहीं करना चाहिए। अधिक व्यय तो पुण्य-कार्यों में ही करना उचित है। यह बात अन्यत्र भी समझनी चाहिए। विवाह-व्यय आदि के अनुसार आदरपूर्वक स्नात्र-महोत्सव, महापूजा, नैवेद्य चढ़ाना, चतुर्विध संघ का सत्कार आदि भी करना चाहिए, इस प्रकार के पुण्यकार्यों से भव के हेतुभूत विवाह आदि कर्म भी सफल होते हैं।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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