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श्राद्धविषि/६
दीर्घकाल तक टिकता है, उसी प्रकार उपर्युक्त चारों गुणों से युक्त श्रावक में ही शुद्धधर्म टिक सकता है। अर्थात् इन चारों गुणों से युक्त श्रावक ही शुद्धधर्म का अधिकारी है।
चुल्लक आदि दस दृष्टान्तों से दुर्लभ ऐसा सम्यग्दर्शन भी सद्गुरु का योग मिलने पर प्राप्त हो जाता है।
* श्रावक का स्वरूप नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के भेद से श्रावक के चार प्रकार हैं
१. नामश्रावक-श्रावक के गुणों से रहित हो किन्तु जिसका नाम 'श्रावक' हो वह नामश्रावक है। जैसे किसी का नाम 'ईश्वर' रखा हो किन्तु वास्तव में वह दरिद्र हो।
२. स्थापनाधावक-किसी श्रावक की काष्ठ अथवा पाषाण से बनी हुई प्रतिमा को 'स्थापना श्रावक' कहते हैं ।
३. द्रव्यश्रावक-भावरहित श्रावक की क्रिया करने वाला द्रव्यश्रावक कहलाता है। जैसे-चंडप्रद्योत राजा के आदेश से अभयकुमार को बन्धनग्रस्त करने के लिए वेश्या ने श्राविका के बाह्य आचार का पालन किया था।
४. भावभावक-भावपूर्वक श्रावक के आचार-पालन में तत्पर रहने वाला भावश्रावक कहलाता है।
नाम, स्थापना और द्रव्य गाय से जिस प्रकार दूध की प्राप्ति नहीं होती है, उसी प्रकार नाम, स्थापना और द्रव्य श्रावक मुक्ति के साध्य को सिद्ध नहीं कर पाते हैं, अतः उनका वर्णन निष्प्रयोजन होने से इस ग्रन्थ में भावश्रावक के स्वरूप का वर्णन किया जाएगा।
* भावश्रावक के भेद के भावश्रावक के तीन भेद हैं-१. दर्शनश्रावक २. व्रतश्रावक ३. उत्तरगुण श्रावक ।
१. दर्शनश्रावक-केवल सम्यक्त्व को धारण करने वाला चतुर्थ गुणस्थानकवर्ती श्रावक दर्शनश्रावक कहलाता है। जैसे-श्रेणिक, कृष्ण आदि । २. व्रतश्रावक-सम्यक्त्व सहित पाँच अणुव्रतों को धारण करने वाला व्रतश्रावक कहलाता है।
* सुरसुन्दर कुमार की पांच स्त्रियों की कथा * सुरसुन्दरकुमार के पाँच स्त्रियाँ थीं। वह गुप्त रूप से उनके चरित्र को देखता था। एक बार कोई मुनि भगवन्त गोचरी के लिए पधारे ।
* यहां मूल ग्रन्थ में विस्तार से 'शुकराजा की कथा कही गई है। वह कथा भावानुवाद के रूप में परिशिष्ट
में दी गई है।