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श्राद्धविधि/५
१२. गुणरागी-गुणवान का पक्ष करने वाला और गुणहीन की उपेक्षा करने वाला हो। १३. सत्कथ–धर्म सम्बन्धी वार्तालाप ही जिसे प्रिय हो। १४. सुपक्षयुक्त-सुशील और अनुकूल परिवार से युक्त हो।
१५. सुदीर्घदर्शी-कार्य करने से पहले दीर्घदृष्टि से विचार करने वाला एवं अधिक लाभ और अल्प हानि के कार्य को करने वाला हो।
१६. विशेषज्ञ-पक्षपात रहित होने से जो गुण-दोष के अन्तर को समझने वाला हो। १७. वृद्धानुसारी-आचारवृद्ध, ज्ञानवृद्ध और वयोवृद्ध का अनुसरण करने वाला हो। १८. विनीत-गुणीजनों का बहुमान करने वाला हो। १६. कृतज्ञ-दूसरों के द्वारा स्वयं पर हुए उपकार को भूलने वाला न हो। २०. परहितार्थकारी-निःस्पृह भाव से दूसरों का उपकार करने वाला हो। २१. लब्धलक्ष्य-धर्मकार्यों में पूर्णतया शिक्षित हो।
भद्रकप्रकृति आदि उपर्युक्त चार गुणों की प्राप्ति होने पर प्रायः इन इक्कीस गुणों की भी प्राप्ति हो जाती है। . __ निम्नलिखित प्रकार से इन चार गुणों में इक्कीस गुणों का समावेश कर सकते हैं
(1) भद्रकप्रकृति गुण में १. अक्षुद्रता २. प्रकृतिसौम्य ३. अक्रूरत्व ४. दाक्षिण्य ५. दयालुता ६. मध्यस्थ-साम्यदृष्टि ७. वृद्धानुसारिता तथा ८. नम्रता-इन आठ गुणों का समावेश हो जाता है।
(2) विशेषनिपुरणमति गुण में १. पंचेन्द्रियपूर्णता २. दीर्घदर्शिता ३. विशेषज्ञता ४. कृतज्ञता ५. परोपकारिता तथा ६. लब्धलक्षता आदि छह गुणों का समावेश होता है।
(3) न्यायमार्ग में रति गुण में १. पापभीरता २. शठता ३. लज्जा ४. गुणानुराग तथा ५. सत्कथा इत्यादि पाँच गुणों का समावेश हो जाता है।
(4) निजवचन में दृढ़स्थिति गुण में १. लोकप्रियता तथा २. सुपक्षयुक्तता गुण का समावेश हो जाता है।
इन चार गुणों में से प्रथम तीन गुणों से रहित पुरुष कदाग्रह से ग्रस्त होने के कारण, मूढ़ होने के कारण तथा दुर्नय में आसक्त होने के कारण श्रावकधर्म की प्राप्ति के योग्य नहीं हैं ।
____ दृढ़प्रतिज्ञत्व रूप चौथे गुण से रहित पुरुष श्रावकधर्म को स्वीकार तो करता है, परन्तु धूर्त की मैत्री, पागल व्यक्ति के सुन्दर वेष तथा बन्दर के गले में डाले गये हार की तरह वह अल्प काल ही टिकता है।
जिस प्रकार सुन्दर व चिकनी दीवार पर चित्र दीर्घकाल तक टिकता है, मजबूत नींव के आधार पर महल दीर्घकाल तक टिकता है तथा सुघटित स्वर्ण के आभूषण के बीच माणिक्य रत्न