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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
कुसोर कुश:-तालव्य श के स्थान पर दन्त्य स। सेसो शेष:-तालव्य और मूर्धन्य दोनों के स्थान पर दन्त्य स । सद्दो< शब्दः-तालव्य श को दन्त्य स, संयुक्त ब का लोप और द को द्वित्व । निसंसो< नृशंस:-नकारोत्तर ऋ को इ और तालव्य श को दन्त्य स । वंसोवंश:- तालव्य श को दन्त्य स । दस < दश- , "
सोहइ दशोभते -तालव्य श को दन्त्य स, भ के स्थान पर ह और विभक्ति चिह्न इ।
सण्डो<षण्ड:-मूर्धन्य ष को दन्त्य स। कसाओ< कषाय:- , , विसेसो< विशेषः-दोनों ही श, ष को दन्त्य स । ( १३३ ) दसन् और पाषाण शब्दों में श और ष के स्थान पर विकल्प से ह होता है। यथा
दसमुहो, दहमुह <दशमुखः । दहबलो, दसबलो< दशबलः । दहरहो, दसरहो<दशरथः। '
पहाणो< पाषाणः। ( १३४ ) अनुस्वार से पर में रहने वाले ह के स्थान में विकल्प से घ आदेश होता है । यथा
सिंघो, सीहो< सिंहः ।
संघारो, संहारो< संहारः। (१३५ ) व्याकरण, प्राकार और आगत शब्दों में क, ग और स्वर का विकल्प से लोप होता है।
वारणं, वायरणं < व्याकरणम् –प्रथम् रूप व्य का सर्वापहारी लोप होने से बनता है और द्वितीय में अ स्वर शेष तथा इसके स्थान पर य ।
पारो, पयारो< प्राकारः- ,
आओ, आगओ<आगत:-प्रथम रूप ग का सर्वापहारी लोप होने से और द्वितीय लोप न होने से बनता है।
१. दश-पाषाणो हः ८।१।२६२. हे । २. हो घोनुस्वारात् ८।१।२६४. हे । ३. व्याकरण-प्राकारगते कगोः ८।१।२६८. हे ।