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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण ४७५ ४७५ समयवाचक अव्यय जामाहि, जाम, जाउं-जब तक तामहि, ताम, ताउ-तब तक तो-तबसे अन्य अव्यय अन्न, अन्नह < अन्यथा अन्य प्रकार से। अवसर अवशेन वश में न होने से। अवसर अवश्यम् अवश्य ही। अहवह अथवाआहरजाहर, ऐहिरेयाहिरे-- एम्बहि < इदानीम् इस समय। उट्ठवइस उत्तिष्ठविश उठने का इच्छुक । इक्कसि < एकशः एक वार। एत्तहे अन्न यहां एत्तहेर इत: यहां से अथवा वाक्यारम्भ के लिए । जि जिससे । एम्ब< एवं इस प्रकार, ऐसे या वाक्य जोड़ना। एम्वइ<एवं कहतिहु< कुतः कहां से।. किह, किधर कथम् क्यों या किस तरह। किर किल किल, निश्चय । केत्थुर कुत्र कहाँ। केहि तादर्थ्य बतलाने के लिए या किलके । खाई निरर्थक वाक्य पूर्ति के लिए। घुग्ध छुडुद यदि जणि, जणु जेत्थु, जत्तु र यत्र जेम, जिम, जेम्ब, जिम्ब< यथा जिह, जिध जाम, जा, जामहि यावत् तणेण : चेष्टा का अनुकरण करने में। जो। जानना या इव की सूचना के लिए। जहाँ। जैसा। जब तक। तादर्थ्य की सूचना के लिए।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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