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________________ अभिनव प्राकृत - व्याकरण ४४३ (५) कुछ पदों में समास होने पर उत्तरपद के पूर्व म् का आगम हो जाता है । यथा अन्नमन्न <<अन्न + अन्न-उत्तर पद के अन्न के पूर्व मकारागम । एगमेग = एग + एग- उत्तर पद एग के पूर्व मकारागम । चित्तमाणं दियं : चित्त + आनंदियं = उत्तर पद आनंदियं के पूर्व मकारागम । (६) पाय, माय, गिच्छिग, पडुप्पण, साहि, सुहुम आदि शब्दों का पत्त मेत इच्छय आदि की तरह उपयोग होता है । = (७) तृतीया के एकवचन में अर्धमागधी के समान कहीं-कहीं सा का प्रयोग भी पाया जाता है । और प्रथमा विभक्ति के एकवचन में महाराष्ट्री के समान ओ पाया जाता है । यथा 1 मन + सा = मणसा < मनसा ; - जिण - जिणो वय + सा = वयसा द वचसा; वीर-वीरो । काय + सा = कायसा 4 कायेन; गोयम = गोयमो । ( ८ ) आइक्खइ, कुव्वाइ, सडइ, सोलइ, वोसिरह प्रभृति धातुरूप उपलब्ध होते हैं । ( ९ ) क्त्वा प्रत्यय के रूप अर्धमागधी के च्चा और त्तु प्रत्यय जोड़ने से भी बनाये जाते हैं । महाराष्ट्री तूण और ऊण भी पाये जाते हैं । यथा— सुण +च्चा = सो + च्चा = सोचा श्रुत्वा । कृ + च्चा = कि +च्चा = किच्चा वंदित्तु — वंदि + त्तु = वंदित्तु - आलोचि + ऊण = आलोचिऊण आलोच्च । कृत्वा । वंदित्वा | चवि + ऊ = चविऊण च्युत्वा । मुच् + तूण – मोत्त् + तूण = मोत्तूण -- मुक्त्वा । ( १० ) त प्रत्ययान्त रूप ड में परिवर्तित दिखलायी पड़ते हैं । यथा कर्ड < कृतम्-त के स्थान पर ड । "" < "" वावडं व्यापृतम्संवुडं संवृत्तम् - ( ११ ) असू धातु का सभी काल, समान आसी रूप पाया जाता है । सभी अहेसी रूप भी उपलब्ध होता है । "" " वचन और सभी पुरुषों में अर्धमागधी के कालों के बहुवचन में महाराष्ट्री के समान अवशेष नियम प्राकृत के समान ही जैन महाराष्ट्री में प्रवृत्त होते हैं ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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