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अभिनव प्राकृत-व्याकरण ____ अभिसेकमर्हति-अभिसिक्को-अभिसेक्+क = अभिसिक्का आभिषिक्यः; अलंकारं करेइ त्ति-अलंकार + इय = आलंकारिए, अलंकारिए < अलंकार्यः; पसिणं करेइ त्ति—पासणिए < प्राश्निकः । अनेकार्थक प्रत्यय
(४८ ) तृतीयान्त से निर्वृत, क्रीत, चरति, व्यवहरति और जीवित अर्थ में इत्ता, इय, इम, आउ, इल्ल और अ प्रत्यय होते हैं । यथा
____ अब्भोधगमेन निव्वत्ता-अब्भोवगम + इत्ता = अब्भोगमिया (त्त के स्थान पर य हुआ है ) आभ्युपगमिकी; अहिगरण + इत्ता--या + अहिगरणिया < आधिकरणिकी; दण्डेण निव्वत्तं दण्डिमं–दण्ड + इय = दण्डियं < दण्डिमम्; सयेण कीयंसतिय; सइयं -- सत + इय = सतियं, तकार का लोप होने पर सइयं शतकम् ।
णाएणं ववहरति-णेयाउओ, णेयाइयो< नैयायिकः तेल्लेणं जीवइ-तेलिलओ-तेल + ल्लिअ = तेल्लिओ< तैलिकः । आहारयणं ववरइ = आहारायणिय < यथारान्निकम्; तेयहियं तेजोहितम् । चक्खुणा णिगिहजइ-चक्खुसं< चाक्षुषम् ।।
अस्सिणिए जुत्ता पुण्णमाली—आसोई, अस्लोई ८ अश्विनी ; आसाढी आषाढी, कत्तिया कात्तिकी, जेट्टामूला < ज्येष्ठामूली, फरगुणी फाल्गुनी, विसाही र वैशाखी, मगसिरा मार्गशीर्षा, साविट्टी< श्राविष्ठा, पोवती< प्रौष्ठपदी, पोसी< पौषी, माहीर माघी, चेतो चैत्री।
__ आसोइ पुण्णमासी अस्सि मासंमि-आसोओ मासो—असोह + अण = आसोओ मासो< आचिनो मास: ; वातेण उवयं-वातीणं, वाईणं-बात + इन = वातीणं, वाईणं-तकार का लोप होने पर।
पसंगाओ आगयं-पासनियर प्रासंगिकम् । पारितोसियंपारितोषिकम् । ( ४९ ) पाई शब्द से भवार्थ में ण प्रत्यय होता है । यथापाई +ण = पाईणं, पादीणं < प्राचीनम् ( ५० ) पहादि सप्तम्यन्त शब्दों से साधु अर्थ में एजण प्रत्यय होता है । यथापहे साहू-पाहेज < पाथेयः । (५१) सप्तम्यन्त पासे शब्द से इल्ल प्रत्यय होता है। यथापास + इल्ल-पासिल्लओ< पाश्विकः ।
( ५२ ) बहि शब्द को अण् प्रत्यय के परे म और र का आगम होता है। तथा--
बहि + * = बहिर्म, बहिरं - बाह्यम् । ( ५३ ) मम शब्द से म और इल प्रत्यय होते हैं । यथामज्झम, मज्झिम, मझिल्लं दमध्यमम् ।