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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण ३६५ दम दय दल, दा; दल दमय् उदय दा, दिल् , दिलय दलिद्दा दरिद्रा दवाव दापय दह दह. दार दारय दिक्ख दीक्ष दिगिच्छ जिघत्स् दिप्प, दीव, धिप्प दीप दिव, देव दिव् दुक्खाव Vदुःखय् दुगुण द्विगुणय भ्रम् निग्रह करना रक्षण करना, कृपा करना, देना देना, दान करना; विकसना, फटना चूर्ण करना, टुकड़े करना दुर्गति होना, दरिद्र होना छोड़ना दिलाना जलना, भस्म करना विक्षरना, तोड़ना दीक्षा देना खाने की इच्छा करना चमकना, तेज होना क्रीड़ा करना, जीतने की इच्छा करना दुःख उपजाना, दुःखी करना दुगुना करना खोयी हुई वस्तु की तलाश में घूमना, भ्रमण करना आरूढ होना, चढ़ना दुहना, दूध निकालना छेदना; दुःखी करना उत्ताप करना, सन्ताप करना गमन करना, विहार करना दूषित होना, दूषण लगाना कहना, उपदेश देना हिलना, झूलना आ + रुह दुह दुहाव, दूभ दू, दूम दूज्जइ छिद्, Vदुःखय दू RE दिशय दोलय धम Vध्मा Vष धर धरिस धवक्क धवल धमना, आग में तपाना धारण करना, पृथ्वी का पालन करना संहत होना, एकत्र होना "धड़कना, भय से व्याकुल होना सफेद करना धसना, नीचे जाना Vधवलय धस--- धस
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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