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________________ अर्ची +क अभिनव प्राकृत-व्याकरण ३३५ अग्घ राज, अई शोभना, चमकना; योग्य होना लायक होना अग्घा मा+बा सूंघना अञ्च अर्च पूजना, सत्कार करना अञ्चासाय अत्या + Vशातम् अपमान करना, हैरान करना अच्चीकर प्रशंसा करना अच्छ आस् बैठना अच्छिद आ+ छिद् छेद करना, काटना अच्छोड आ + छोटय पटकना, पछाड़ना, सींचना, छिटकना अज्ज अर्ज पैदा करना, उपार्जन करना अज्जाव आ + ज्ञापय आज्ञा करना, हुक्म करना अज्झयाव अधि + आप पढ़ना, सीखना अज्झवस अध्य + Vवस् विचार करना, चिन्तन करना अमरस आ + आक्रोश करना, अभिशाप देना अमावस अध्या + Vवस् रहना, वास करना अझोववज्ज अध्युप + पद् अत्यासक्त होना, आसक्ति करना अट, अड अट् भ्रमण करना, घूमना अडखम्म . सँभालना, रक्षण करना अडक्ख फेंकना, गिरना अण आवाज करना, जानना, समझना अणुअंच अनु वृष् पीछे खींचना अणुकंप अनु + कम्प दया करना अणुकड्ढ अनु + कृष खींचना, अनुसरण करना अणुकर, अणुकुण अनु +1क अनुकरण करना, नकल करना अणुकह अनु + Vथ् दुहराना, अनुवाद करना, पीछे . बोलना अणुक्कम अनु + क्रम् अतिक्रमण करना अणुगच्छ, अणुगम अनु + गम् पीछे चलना, अनुगमन करना, अनु सरण करना अणुगवेस अनु + गवेष .. - खोजना, शोधना, तलाश करना अणुगिल अनु + V] भक्षण करना अणुग्गह अनु + ग्रह-..-- कपा करना क्षिप् भण्
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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