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________________ कृदन्तविचार कृत् प्रत्यय धातु के अन्त में लगते हैं और उनके योग से संज्ञा, विशेषण अथवा अव्यय के रूप बनते हैं। कृत् प्रत्ययों से सिद्ध शब्द कृदन्त कहलाते हैं । कृत और तिङ प्रत्ययों में यह अन्तर है कि कृत् प्रत्ययों से सिद्ध कृदन्त शब्द संज्ञा, विशेषण अथवा अव्यय होते हैं। कहीं कहीं कृदन्त शब्द क्रिया का भी कार्य करते हैं। पर तिङ प्रत्ययों से सिद्ध तिङन्त शब्द सदा क्रिया ही होते हैं । कृत् और तद्धित प्रत्ययों में यह अन्तर है कि तद्धित प्रत्यय सर्वदा किसी सिद्ध संज्ञा, विशेषण अथवा अव्यय में जोड़े जाते हैं; किन्तु कृत् प्रत्यय धातु में ही लगते हैं। वर्तमान कृदन्त ( ४० ) धातु में न्त, माण और ई प्रत्यय लगाने से वर्तमान कृदन्त के रूप होते हैं। पर ई प्रत्यय केवल स्त्रीलिङ्ग में ही जोड़ा जाता है। ( ४१ ) धातु के प्रेरकरूप में न्त, माण और ई प्रत्यय लगाने से प्रेरक कर्तरि वर्तमान कृदन्त के रूप होते हैं। यहां पर भी ई प्रत्यय केवल स्त्रीलिङ्ग में जुड़ता है। ( ४२ ) धातु के प्रेरक भावि और कर्मणि रूप में न्त, माण और ई प्रत्यय • लगाने से प्रेरक भावि और कर्मणि कृदन्त के रूप होते हैं। ( ४३ ) वर्तमान कृदन्त के न्त, माण और ई प्रत्यय के परे पूर्ववर्ती अकार को विकल्प से एकार होता है । यथाभण-भण+न्त = भणन्त, भण+माण = भणमाणपुंल्लिङ्ग नपुंसकलिङ्ग स्त्रीलिङ्ग भणंतो, भणमाणो भणंतं, भणमाणं भयंती, भणंता भणेतो, भणेमाणो भणेत, भणेमाणं .. भणेती, भणेता पा-पाअंतो, पाअमाणो पाअंतं, पाप्रमाणं पाअंती, पाअंता पाएंतो, पाएमाणो पाएंतं, पाएमाणं पाएंती, पाएंता पांतो, पामाणो पांत, पामारणं पांती, पांता पाअमाणी, पाअमाणा पाएमाणी, पाएमाणा पामाणी, पामाणा पाअई, पाएई, पाई पण
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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