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________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण ३१३ ( ३९ ) संज्ञा या प्रातिपदिक को 'नाम' कहते हैं; उससे किसी विशेष अर्थ में प्रत्यय होकर धातुवत् रूपों की जिसमें उत्पत्ति होती है, उसे नामधातु प्रक्रिया कहते हैं । पर्य यह है कि जब किसी सुबन्त संज्ञा के अनन्तर प्रत्यय जोड़कर धातु बना लेते हैं, तो उसे 'नामधातु' कहते हैं। नामधातुओं के विशेष विशेष अर्थ होते हैं । प्राकृत में नामधातु बनाने के निम्नलिखित नियम हैं। 1 (४०) नामधातु बनाने के लिए प्राकृत में विकल्प से अ (य) प्रत्यय जोड़ा जाता है । यथा गुरुआइ, गुरुआअइ 4 गुरुरिव आचरतीति - गुरुकायते अमराइ, अमराअइ < अमर इव आचरतीति — अमरायते तमाइ, तमाअइतमायते--- अन्धकार में होनेवाला आचरण करता है 1 अलसाइ, अलसाअइ अलसायते - आलसी के समान आचरण करता है । ऊम्हाइ, उम्हाअइ < उष्मायते - गर्मी में होनेवाला जैसा आचरण करता है । दमदमाइ, दमदमाइ दमदमायते - दम दम जैसा करता है । धूमाइ, धूमाअइ धूमायते — धूम मचाता है । सुहाइ, सुहाअइ सुखायते - सुखी होता है, सुख का अनुभव करता है । सद्दाइ, सद्धाअइ द शब्दायते - शब्द करता है । लोहिआए—- इ, लोहिआए - इद लोहितायते - लाल होता है । हंसाए - इ, हंसाए - इहंसाते - हंस के समान आचरण करता है । अच्छा - इ, अच्छराए - इ८ अप्सरायते - अप्सरा के समान आचरण A करता है । उम्मणाए – इ, उम्मणाअए – इ – उन्मनायते - उन्मना होता है । - कट्ठाए - इ, कट्ठाअए -इ कष्टायते - कष्ट का अनुभव करता है । अस्थाअइ, अस्थाइ < अस्तायते - अस्त होता है । तणुआइ, तणुआअइ < तनुकायति - दुबला होता है । संझाअइ, संझाइ 4 सन्ध्यायते - सन्ध्या होती है । सीदलाअइ, सीदलाइ शीतलायति - शीतल होता है । पुत्तीअइ, पुत्तीइ पुत्रीयति -पुत्र की इच्छा करता है कुरुकुराअइ, कुरुकुराइ ८ कुरुकुरायते – कुरुकुरु करता है । थरथरेइ थरथरायते थर थर करता है । 1 घणाअइ, घाइधनायति — धन की इच्छा करता है । अस्साअइ, अस्साइ << अम्श्वस्यति - मैथुनेच्छा करता है । गव्वाइ, गव्वाइ व्यति-गो की इच्छा करता है ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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