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अभिनव प्राकृत-व्याकरण जीती है अथवा नहीं। पश्चात्ताप अर्थ में हन्दि किं पिआ मुक्का ? क्या हमने विरह दुःख का बिना विचार किये ही प्रियतमा को छोड़ दिया ? निश्चय अर्थ में-हन्दि मरणं-मरना निश्चित है । सत्य अर्थ में हन्दि जमो गिम्हो-ग्रीष्म यमराज है, यह बात सच है। शोकसूचक अर्थ में-हा रोगेण पीडितामि-रोग से पीड़ित हूँ।
( ४ ) भय, वारण और विषाद अर्थ में 'वेव्वे' का प्रयोग होता है। यथासमुहोट्ठीअम्मि मयरे वेव्वे त्ति भणेइ मल्लिउञ्चिणिरी--सम्मुखोत्थिते भ्रमरे वेव्वे इति भणति मल्लिकामुच्चेत्री।
( ५ ) निश्चय, वितर्क, संभावना और विस्मय अर्थों में 'हुँ' और 'खु' का प्रयोग किया जाता है। निश्चय अर्थ में --- सो हु अन्नरओ-यह निश्चित है कि वह दूसरी स्त्री में रम गया है। वितर्क और संभावनों अर्थो में-तस्स हुँ जुग्गा सि सा खु न तंमैं ऐसा अनुमान करता हूँ और यह संभव भी है कि वह दूसरी स्त्री उसके योग्य है और तुम उसके प्रियतम के योग्य नहीं हो। विस्मय अर्थ में-एसो खु तुझ रमणोआश्चर्य है कि यह तुम्हारा प्रिय है।
(६ ) गर्दा, आक्षेप, विस्मय और सूचन अर्थों में ऊ का प्रयोग किया जाता है । गीं अर्थ में-तुज्झ ऊ रमणे-तुम्हारा निन्दित रमण। आक्षेप अर्थ में-ऊ किं मए भणिअं-- अरे मैंने क्या कह डाला । विस्मा अर्थ में-ऊ अक्षरा मह सही - अहो, मेरी सखी अप्सरा है। सूचन अर्थ में—ऊ इअ इसेइ लोओ-तुम्हारे प्रियतम को दोष दे-देकर सखियां हँसती हैं।
( ७ ) आश्चर्य अर्थ में अम्मो अव्यय का प्रयोग होता है। यथा-स अम्मो पत्तो खु अप्पणो-वह प्रियतम अपने आप प्राप्त हो गया; आश्चर्य है।
(८) रतिकलह अर्थ में रे, अरे और हरे अव्यय का प्रयोग होता है। यथा-- अरे मए समं मा करेसु उवहासं-रतिकाल में झगड़ा हो जाने पर नायिका कहती है-अरे मेरे साथ हँसी मत करो। अरे बहुवल्लह-अरे बहुतों के प्रिय ।
( ९ ) हद्धी अव्यय निर्वेद अर्थ में प्रयुक्त होता है। यथाहद्धी, इअ व्व चीरीहि उल्लविरं।
(१० ) अम्हो आश्चर्य अर्थ में प्रयुक्त होता है। यथा-अम्हो कहं भाइआश्चर्य कथं भाति ।