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________________ १९३ अभिनव प्राकृत-व्याकरण वर्तमान कृदन्त नपुंसक लिङ्ग-हसन्त, हसमाण एकवचन बहुवचन प०-हसन्तं हसन्ताई, हसन्ताइँ, हसन्ताणि हसमाणं हसमाणाई, हसमाणाइँ, हसमाणाणि वी०-हसन्तं हसन्ताई, हसन्ताइँ, हसन्ताणि हसमाणं हसमाणाई, हसमाणाई, हसमाणाणि अवशिष्ट रूप वण शब्द के समान होते हैं। इसी प्रकार वेवन्तं, वेवमाणं; धरन्तं, धरमाणं; सवन्तं, सवमाणं; महन्तं, महमाणं आदि शब्दों के रूप भी होते हैं। वत्प्रत्ययान्त नपुंसकलिङ्ग भगवन्तं ( भगवत् ) शब्द एकवचन बहुवचन 'प०-भगवन्तं भगवन्ताइँ, भगवन्ताई, भगवन्ताणि शेष रूप वण के समान होते हैं। . आउसो, आउ ( आउष् ) बहुवचन प०-आउसं आउसाई, आउसाइँ, आउसाणि वी०-आउसं आउसाई, आउसाइँ, आउसाणि शेष रूप वण शब्द के समान होते हैं । आउ एकवचन बहुवचन प०-आउं आउई, आऊइँ, आऊणि वी०-आउं आउइं, आउइँ, माऊणि त०-आउणा आऊहि-हिं-हि च०-आउणो, आउस्स प्राऊण, आऊणं प०-आउणो, आउत्तो, आऊओ, आउत्तो, आऊओ, आऊउ, आऊहिन्तो, आऊउ, आऊहिन्तो - आऊसुन्तो एकवचन
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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