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________________ १७८९ एकवचन प० - दहिं वी० - हिं त० - दक्षिणा च० - दहिणो, दहिस्स पं० -- दहिणो, दहित्तो, दहीओ, दहीउ, दहीहिन्तो छ० - दहिणो, दहिस्स स० - दहम्म सं० - हे दहि एकवचन प० - वारि वी० - वारिं एकवचन प० - सुरहिं वी० सुरहिं अभिनव प्राकृत - व्याकरण इकारान्त दहि ( दधि ) शब्द बहुवचन दही, दहीहं, दहीणि वही हैं, दहीहं, वहीणि दहीहं बहुवचन वारीहूँ, वारी, वारीणि वाइँ, वाई, वारीणि इसके आगे इकारान्त पुल्लिंग शब्दों के समान रूप होते हैं । एकवचन प० - महुं वी० - महुं दहीण, दहीणं दहित्तो, दहीओ, दहीउ, दहीहिन्तो, दहीसुन्तो दहीण दहीणं दही, दहीसु वारि दही, दही, दहीणि त० - महुणा च० - महुणो, महुस्स पं० - महुणो, महत्तो, महूओ, सुरहि (सुरभि ) बहुवचन सुरहीहूँ, सुरहीहूं, सुरहीणि सुरहीहूँ, सुरहीहं, सुरद्दीणि इसके आगे पुल्लिंग शब्दों के समान रूप होते हैं। 1 उकारान्त महु ( मधु ) शब्द बहुवचन हू, महू, म महू, मह, महणि महूहि, महद्दि, महूि महूण, महू महतो, महूओ, महूड, महुद्दिन्तो,
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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