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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
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छ०-वच्छस्स स०-वच्छे, वच्छम्मि, वच्छंसि सं० हे वच्छो, हे वच्छा
वच्छाण, वच्छाणं वच्छेसु, वच्छेसु हे वच्छा
धम्म <धर्म एकवचन
बहुवचन प०-धम्मो
धम्मा वी०-धम्म
धम्मा, धम्मे त०-धम्मेण, धम्मेणं धम्मे है, धम्मेहि", धम्मेहि च०-धम्मस्स, धम्माय धम्माण, धम्माणं पं०-धम्मत्तो, धम्माओ, धम्माउ धम्मत्तो,धम्माओ,धम्माउ,धम्माहि,धम्मेहि,
धम्माहि, धम्माहितो, धम्मा धम्माहितो,धम्मेहितो, धम्मासंतो, धम्मसंतो छ०-धम्मस्स
धम्माण, धम्माणं स०-धम्मे, धम्मम्मि, धम्मसि धम्मेसु, धम्मसु सं०-हे धम्मो, हे धम्मा हे धम्मा
अवमाण (अपमान), अलोग (अलोक), आयार (आचार), उज्जम (उद्यम), उवएस (उपदेश), कुढार (कुठार), कोह (क्रोध), चन्द (चन्द्र), जिणेसर, देह, नाय (न्याय), नरिंद (नरेन्द्र), निरय (नरक), बहिर (बधिर), बंभण (ब्राह्मण), भाव (भाव), मणोरह (मनोरथ), महिवाल (महिपाल), मिग, म. (मृग), मुक्ख, मोक्ख (मोक्ष), मेह (मेघ), रोस (रोष), लोभ (लोक), वह (वध), वम्मह (मन्मथ), बाह (व्याध), विणय (विनय), वीयराअ (वीतराग), संघ (सङ्घ), सज्जण (सज्जन), रूढ (सठ), सहाव (स्वभाव), सर (शर), सग्ग (स्वर्ग), सावग (श्रावक), हत्थ (हस्त), पायव (पादप), कच्छव (कच्छप), अहिव (अधिप), गिहत्थ (गृहस्थ), सुत्तगार (सूत्रकार), बुत्तिगार (वृत्तिकार), भासगार (भाष्यकार), सूरिअ (सूर्य), वरिअ (वर्य), सोरिअ (शौर्य), कसण, कसिण (कृष्ण), पज्जुण्ण (प्रद्युम्न), नमोक्कार (नमस्कार), सीह, (सिंह), वग्घ (व्याघ्र), सियाल, सिगाल (शृगाल), गय (गज), वसह (वृषभ), ओह (ओष्ठ), दंत (दन्त), कुंभार (कुंभकार), चम्मार (चर्मकार), लोह (लोभ), दोस (द्वेष), राग (राग), घड (घट), पड (पट), मढ (मठ) एवं मड आदि अकारान्त शब्दों के रूप देव, धम्म, वीर, वच्छ के समान ही चलते हैं। . साधारणत: चतुर्थी के रूप षष्ठी के समान ही होते हैं, पर संस्कृत के प्रभाव के कारण य और ए प्रत्यय संयुक्त रूप भी मिलते हैं। यथा-वहाय और वहाए।