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अभिनव प्राकृत-व्याकरण
१४३ निउण-निउणा, अचल-अचला, मलिण-मलिणा, चउर-चउरा, पढम-पढमा।
वीय-वीया।
( २ ) स्त्रीलिंग में सस-स्वस्त्र आदि शब्दों से पर में आ प्रत्यय जोड़ने से ससा आदि रूप होते हैं।'
(३) संस्कृत के नकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ई प्रत्यय होता है । यथा-राया + ई = राणी, माहण + ई = माहणी; बंभण + ई-वभणी। हस्थिहत्थिणी।
( ४ ) रकारान्त, तकारान्त और भय, अज, ठक् और ठञ् प्रत्ययों से बने संस्कृत शब्दों से प्राकत में प्रायः स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ई प्रत्यय जुड़ता है । यथा
रकारान्त-कुंभआर + ई = कुंभआरी, कुम्हारी; लोहआर--लोहारी; कुमार-कुमारी।
तकारान्त-सिरीमअ + ई = सिरीमई; पुत्तवअ-पुत्तवई ; धणवअधणवई।
( ५ ) संस्कृत के पित् शब्दों-- नर्तक, खनक, पथिक प्रभृति तथा गौर, मनुष्य, मत्स्य, शृंग, पिङ्गाल, हय, गवय, ऋष्य, द्रुण, हरिण, कोकण अणक, आपलक, शक्कुल, वदर, उभय, नर और मंगल शब्दा में स्त्रीलिंग बनाने के लिए प्राकृत में ई प्रत्यय जोड़ा जाता है। यथा
गट्टअ + ई = गट्टई, खणअ + ई = खणई, पहिअ + ई = पहिई, कुमार + ई = कुमारी, किसोर-किसोरी, सुन्नर-सुन्नरी, णअ-णई, पड--पडी, कअलकअली, थल-थली, काल-काली, मंडल-मंडली आदि। . (६ ) जाति अर्थ में जातिवाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ई प्रत्यय जोड़ा जाता है। यथा
सीह + ई = सीही, वग्य+ई = वग्घी , मअ + ई = मई, हरिणहरिणी, कुरंग-कुरंगी, सूअर-सूअरी, जंबुअ-जंबुई, सिपाल-सियाली, विडाल-विडाली, घोड-घोडी, महिस-महिसी, हंस-हंसी, सारससारसी, गोव - गोवी, चंडाल-चंडाली, बंभण-बंभणी, रक्खस-रक्खसी, निसाअर-निसाअरी।
(७) पाणिनि के 'टिड्ढाणज्' इत्यादि (४।१।१५) से अण आदि प्रत्यय निमित्तक डीप होता है, पर प्राकृत में विकल्प से ई होता है। यथा-साहणी- साहणा; कुरुचरी—कुरुचरा आदि।
१. स्वस्रादेा ८।३।३५ हे०। २. प्रत्यये डीनं वा ८।३।३१.