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________________ १२८ अभिनव प्राकृत-व्याकरण अवजं ८ अवद्यम्-पद के मध्य में रहने से छ का ज्ज । मज्ज< मद्यम्- " __ -"- " वेजो< वैद्य:- " " " (ख) य्य = जजजो< जय्य:-य्य के पद मध्य में होने से ज। सेज्जा < शय्या- तालव्य श को दन्त्य स और अकार को एत्व। (ग) य = ज कजं < कार्यम्-पद के मध्य में 2 के रहने से ज । पज्जत्तं-पर्याप्तम्- , , , तथा संयुक्त ५ का लोप और त को द्वित्व। पन्जाओ< पर्याय:-पद के मध्य में रहने से र्य को ज । भज्जाभार्या–भा को हस्व और पद के मध्य में होने से र्य को ज । मजाया< मर्यादा-पद के मध्य में होने से र्य को ज तथा द का लोप, आ स्वर शेष और य श्रुति । वजं < वर्यम् –पद के मध्य होने से र्य को ज । ( ४४ ) पद के आदि में रहनेवाले संस्कृत के संयुक्त वर्ण ध्य और ह्य को प्राकत में झ होता है, किन्तु पद के मध्य में इन वर्गों के आने पर ज्झ होता है। ( क ) ध्य = झ झाणं < ध्यानम्-पदादि में ध्य के रहने से उसके स्थान में झ तथा न को णत्व। मायइ< ध्यायति-पदादि में ध्य के रहने से उसके स्थान में झ। विंझो विन्ध्य:-पद के मध्य में ध्य के रहने से ज्झ । सझ< साध्या-सा को हस्व और पद के मध्य में रहने से ध्य को ज्झ । सज्झाओ स्वाध्याय:-संयुक्त व का लोप और हस्व, पद के मध्य में रहने से ध्य को ज्झ । (ख) ह्य = झ गुज्झं गुह्यम्-पद के मध्य में रहनेवाले ह्य के स्थान पर ज्झ । नज्मइ नातिमज्झ<मयम् - सज्झो सहाः
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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