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________________ अभिनव प्राकृत - व्याकरण (४०) संस्कृत के संयुक्त वर्ण त्य का प्राकृत में च होता है, पर पद के मध्य में आने से च १२६ (क) त्य = च । चाओ त्याग:- पदादि में रहने से त्य के स्थान में च । त्यागी चाई चयइदस्यजति— 91 "" पच्चओ प्रत्यय: - पद के मध्य में रहने से त्य के स्थान में च्च । पच्चूसो प्रत्यूष: सच्चंद सत्यम् - (क) त्व = च्चकिच्चा कृत्वा - " चच्चरं चत्वरम्— "" 99 "" "" "" ( ४१ ) प्रयोगानुसार स्व को च, थ्व को छ, द्व को ज और ध्व को झ आदेश होता है, किन्तु पद के मध्य में इनके आने से उक्त वर्ण च, च्छ, जऔर ज्म हो जाते हैं । " " "9 1- -पद के मध्य में होने से त्व के स्थान पर च । "" णच्चा< ज्ञात्वा - ज्ञ के स्थान में ण तथा पद के मध्य में होने से त्वा के स्थान पर च्चा । दच्चा दत्वा - पद के मध्य में होने से त्व के स्थान में च । भोच्चा<भुक्त्वा "" "" सोच्चा< श्रुत्वा - संयुक्त रेफ का लोप, तालव्य श को दस्य स तथा उकार को ओत्व, पद मध्य में स्व के होने से । (ख) ध्व = छ— पिच्छी < पृथ्वी-प में संयुक्त ऋ के स्थान पर इत्व और पद के मध्य में थ्व के होने पर च्छ । ( ग ) द्व = ज K विज्जं विद्वान् - पद के मध्य में होने से द्व के स्थान पर ज्ज और आ को हस्त्र अन्त्य हलन्त्य व्यंजन नू का अनुस्वार | (घ) ध्व = झ ओ ध्वजः - पदादि में होने से ध्व का झ, ज का लोप, अ स्वर शेष और विसर्ग का ओत्व | बुज्झा बुध्वा - पद के मध्य में होने से ध्व के स्थान पर ज्झ । सज्झसं साध्वसम् - सा को हस्व, पद के मध्य में होने से ध्व को ज्झ ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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