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________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण १११ संकला शृंखला - संयुक्त रेफ का लोप, तालव्य श को दन्त्य स और ख के स्थान पर क । ( १३ ) संस्कृत की ग ध्वनि का प्राकृत में म ल और व में परिवर्तन होता है । ( क ) ग = म -ग पुंनामाई 4 पुंनागानि के स्थान पर म तथा न लोप और इ स्वर, अनुस्वार । भामिणी भगिनी - ग के स्थान पर म और न को णत्व । ( ख ) ग = ल– छालो छाग:-ग के स्थान पर ल और विसर्ग को ओस्व । छाली < छागी-ग के स्थान पर ल । (ग) ग = व • दूहवो दुर्भग: - उपसर्ग के दुर को दीर्घ, भ को द और ग के स्थान में व तथा विसर्ग को ओव । सुहवो सुभग: - उपसर्ग के K सु को दीर्घ, भ को द्द और ग के स्थान पर व तथा विसर्ग को ओव । ( १४ ) प्राकृत में संस्कृत का च वर्ण ज, ट, ल और स में परिवर्तित होता है । (क) च - ग - पिसागी <पिशाची - तालव्य श को दन्त्य स और च को ग । (ख) च = ट - आउंटणं <आकुञ्चनम् —क का लोप, उ स्वर शेष तथा च के स्थान पर टत्व, न को णत्व | ( ग ) च = ल - पिसल्लो पिशाच:- तालव्य श को दन्त्य स और च के स्थान में ल, विसर्ग को ओत्व | (घ) च = स खसिओ खचित:च के स्थान पर स, अन्तिम त का लोप, अ स्वर शेष, विसर्ग का ओ | 1 ( ११ ) संस्कृत का ज वर्ण प्राकृत में झ में परिवर्तित होता है । झडिलो, जडिलो < जटिल::- ज के स्थान पर विकल्प से झ आदेश, ट के में ड तथा विसर्ग का ओत्व । स्थान ( १६ ) संस्कृत का वर्ण और ल के रूप में परिवर्तित होता है। ढ में प्राकृत ड,
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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