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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण धिई ८ ति:-धकारोत्तर ऋकार को इकार, त लोप और शेष स्वर इ को दीर्घ । नत्तिओ< नप्तृक:- संयुक्त प का लोप, त को द्वित्व, ऋकार को इत्व, क लोप और अ स्वर शेष, विसर्ग को ओत्व। नियो नृपः-नकारोत्तर ऋकार को इत्व और प को व, विसर्ग को ओत्व । निसंसो< नृशंसः-नकारोत्तर ऋकार को इत्व, तालव्य श को दन्त्य स, विसर्ग को ओत्व। पिहं ८ पृथक-पकारोत्तर ऋकार को इत्व, थ को ६, अन्त्य हलन्त का लोप, अनुस्वारागम। पिच्छी< पृथ्वी-पकारोत्तर क को इत्व, थ्वी के स्थान पर च्छी। विहिओ हित:—वकारोत्तर ऋकार को इत्व, त का लोप, अ स्वर शेष और विसर्ग को ओत्व। भिंगो< भृङ्गः-भकारोत्तर ऋकार को इत्व, विसर्ग को ओत्व । भिंगारो<भृङ्गारः- , , . " भिऊ < भृगुः-भकारोत्तर ऋकार को इत्व, ग का लोप और उ स्वर, शेष, दीर्घ । माई < मातृ-तकारोत्तर - को इस्व तथा दीर्घ । मिइँगो<मृदंग:-मकारोत्तर ऋकार को इत्व, द का लोप, अ स्वर शेष तथा शेष अ को इत्व, विसर्ग को ओत्व । मिटुं< मृष्टम्-मकारोत्तर ऋकार को इत्व, संयुक्त प का लोप, ट को द्वित्व तथा द्वितीय ट को ठ। विइण्हो< वितृष्ण:-तकारोत्तर ऋकार को इत्व, ष्ण: के स्थान पर ण्हो । विञ्चुओ< वृश्चिक:-वकारोत्तर ऋकार को इत्व, श्च के स्थान पर ञ्च तथा इ को उत्व, क लोप, अ स्वर शेष और विसर्ग को ओत्व । वित्तं वृत्तम्-वकारोत्तर ऋ के स्थान पर इत्व । वित्ती< वृत्ति:-वकारोत्तर ऋको इत्व, तकारोत्तर इकार को दीर्घ । विद्धकई < वृद्धकविः-वकारोत्तर ऋ को इत्व, व का लोप और शेष स्वर इ को दीर्घ। . विट्ठो< वृष्ट:-वकारोत्तर ऋ को इत्व, संयुक्त पका लोप, ट को द्वित्व तथा द्वितीय ट को ठ। विट्ठी वृष्टिःविसी< वृसी-चकारोत्तर ऋ को इत्व। वाहिअं< व्याहृतम्-संयुक्त य का लोप, हकारोत्तर ऋकार को इत्व, त का लोप और अ स्वर शेष ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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